________________
डॉ० सागरमल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सरल व्यक्तित्व के धनी : डॉ० सागरमल जैन
डा० कमलेश कुमार जैन*
ज्ञान/गुणों की पूजा हमारी सांस्कृतिक विरासत है, और ज्ञानी/गुणवान के प्रति आदर भाव हमारी फितरत में है। यही कारण है कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ की प्रबन्ध समिति प्रो० डॉ० सागरमल जैन को उनकी श्लाघ्य सेवाओं एवं भारतीय विद्या की और विशेषतः जैनविद्या की महत्त्वपूर्ण सेवा के लिए उनको अभिनंदन ग्रंथ समर्पित करने जा रही है, यह एक प्रसन्नता की बात है।
जब आठवें दशक के अंत में डॉ० सागरमल जी ने पार्श्वनाथ विद्याश्रम के निदेशक पद का कार्यभार सम्भाला था, मैं लगभग उसी वर्ष स्नातक कक्षा में अध्ययनार्थ वाराणसी पहुँचा था, तभी से मुझे उनसे मिलने, उनके साथ उठने-बैठने, उनको सुनने, वार्तालाप करने, अनेक गंभीर विषयों पर चर्चा करने तथा मार्गदर्शन एवं प्रेरणा प्राप्त करने का निरन्तर मौका मिलता रहा है।
यह एक आम अनुभव की बात है कि अमुक संस्थाएँ किसी व्यक्ति विशेष के समर्पण का प्रतिफल होती हैं। इसलिए ऐसी संस्थाएँ व्यक्ति केन्द्रित हो जाती हैं या कही जाती हैं। पार्श्वनाथ विद्याश्रम (अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ) भी इसका अपवाद नहीं है।
डॉ० सागरमल जी ने अपनी कार्यप्रणाली, सरल स्वभाव, सूझबूझ एवं लगन से संस्थान को जिस बुलंदी पर पहुँचाया है, इसी कारण वे आज पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पर्याय से बन गये हैं।
डॉ० साहब जैन-धर्म-दर्शन के मनीषी विद्वान् लेखक एवं चिंतक तो हैं ही। उनकी सद्य: प्रसूत लेखनी से शताधिक लेखों, दशकाधिक मौलिक पुस्तकों एवं पुस्तिकाओं तथा अर्धशतक से अधिक पुस्तकों का सम्पादन, एवं दशकाधिक ग्रन्थों की गंभीर महत्त्वपूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखी गई हैं। यह सब कार्य उनकी सतत अध्ययन-अध्यापन में रुचि, लगन, तथा विद्याव्यासंग का ही प्रतिफल है । जो कि विद्वज्जगत् के लिए प्रेरणा, उत्साह का ही नहीं, अपितु अनुकरणीय कार्य है।
अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशन की बेला पर उनके प्रति मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए गौरव का अनुभव करता हूँ एवं भावना करता हूँ कि वे शतायु हों, और अपने चिन्तन, लेखन एवं कार्यों से आगे भी समाज को निरन्तर लाभान्वित करते रहें।
*उपनिदेशक, भोगीलाल लहेरचन्द्र इन्स्टीट्यूट आफ इण्डोलाजी, दिल्ली -३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org