Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
( २१ )
Eurवाद में ईश्वर को जगत में उत्पन्न होने वाले पदार्थों, जीवों को सुख-दुःख देने आदि के प्रति निमित्त माना है। इस विचार की पुष्टि के लिये वह कहता है कि स्थावर और जंगम ( जड़-चेतन) रूप विश्व का कोई पुरुषविशेष कर्ता है। क्योंकि पृथ्वी, वृक्ष आदि पदार्थ कार्य हैं और इनके कार्य होने से किसी बुद्धिमान कर्ता के द्वारा निर्मित हैं, जैसे कि घट आदि पदार्थ पृथ्वी आदि भी कार्य है अत: इनको बुद्धिमान कर्ता के द्वारा बनाया हुआ होना चाहिये और इनका जो बुद्धिमान कर्ता है, उसी का नाम ईश्वर है ।
सृष्टि के निर्माण की तरह ईश्वर उन्हें स्वर्ग-नरक आदि प्राप्त कराने में और परतस्थ हैं; वे तो ईश्वर को अनुभव करते हैं -
——
संसार के प्राणियों को सुख-दुःख देने, कारण है । संसार के जीव तो दीन, आशा एवं प्रेरणा से सुख-दुःख का
अशो
सुखदुःखयोः ।
जन्तुरमीशोऽयमात्मनः ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ॥
इसी प्रकार अन्यान्य विचारकों ने अगल-पंचिल्य के सम्बन्ध में अपने-अपने faere are किये हैं और उन विचारों का मन कर दूसरों के विचारों का खण्डन किया है । इस खंडन-मंडन का परिणाम यह हुआ कि साधारण जनों में भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो गई और जो विचार सत्य को समझने-समझाने में सहायक बन सकते थे वे समन्वय के अभाव में सत्य के मूल मर्म को प्राप्त करने में असमर्थ हो गये ।
षिय : जंन दृष्टि
लेकिन भगवान महावीर ने लोक- वैचित्य के एक विचारों के संघर्ष का समाधान किया । यह समाधान दो प्रकार से किया गया । जिन विचारों का समन्वय किया जा सकता या उनका समन्वय करके और जिन विचारों की उपयोगिता ही नहीं थी उनका सयुक्तिक खंडन और विचित्रता के मूल कारण
२ महाभारत वनपर्यं