Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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प्रस्तावना
Xxxi
ग्रन्थकार की जीवनी
१. समय-प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता श्रीदेवेन्द्रसूरि का समय विक्रम की १३वीं शताब्दी का अन्त और चौदहवीं शताब्दी का आरम्भ है। उनका स्वर्गवास वि.सं. १३३७ में हुआ ऐसा उल्लेख गुर्वावली में स्पष्ट है; परन्तु उनके जन्म, दीक्षा, सूरिपद आदि के समय का उल्लेख कहीं नहीं मिलता; तथापि यह जान पड़ता है कि १२८५ में श्री जगच्चन्द्रसरि ने तपागच्छ की स्थापना की, तब वे दीक्षित हुए होंगे। क्योंकि गच्छस्थापना के बाद श्रीजगच्चन्द्रसूरि के द्वारा ही श्रीदेवेन्द्रसूरि और श्रीविजयचन्द्रसूरि को सूरिपद दिये जाने का वर्णन गुर्वावली में है। यह तो मानना ही पड़ता है कि सूरिपद ग्रहण करने के समय, श्रीदेवेन्द्रसूरि वय, विद्या और संयम से स्थविर रहे होंगे। अन्यथा इतने गुरुतर पद का और खास करके नवीन प्रतिष्ठित किये गये तपागच्छ के नायकत्व का भार वे कैसे संभाल सकते?
__ उनका सूरिपद वि.सं. १२८५ के बाद हुआ। सूरिपद का समय अनुमान वि.सं. १३०० मान लिया जाय, तब भी यह कहा जा सकता है कि तपागच्छ की स्थापना के समय वे नवदीक्षित रहे होंगे। उनकी कुल उम्र ५० या ५२ वर्ष की मान ली जाय तो यह सिद्ध है कि वि.सं. १२७५ के लगभग उनका जन्म हुआ होगा। वि.सं. १३०२ में उन्होंने उज्जयिनी में श्रेष्ठिवर जिनचन्द्र के पुत्र वीरधवल को दीक्षा दी, जो आगे विद्यानन्दसूरि के नाम से विख्यात हये। उस समय देवेन्द्रसूरि की उम्र २५-२७ वर्ष की मान ली जाय तब भी उक्त अनुमान की-१२७५ के लगभग जन्म होने की-~-पुष्टि होती है। अस्तु; जन्म का, दीक्षा का तथा सूरिपद का समय निश्चित न होने पर भी इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वे विक्रम की १३वीं शताब्दी के अन्त में तथा चौदहवीं शताब्दी के आरम्भ में अपने अस्तित्व से भारतवर्ष की और खासकर गुजरात तथा मालवा की शोभा बढ़ा रहे थे।
२. जन्मभूमि, जाति आदि-श्रीदेवेन्द्रसूरि का जन्म किस देश में, किस जाति और किस परिवार में हुआ इसका कोई प्रमाण अब तक नहीं मिला।। गुर्वावली में उनके जीवन का वृत्तान्त है, पर वह है बहुत संक्षिप्त। उसमें सूरिपद १. देखो श्लोक १७४;
२. देखो श्लोक १०७ ३. देखो श्लोक १०७ से आगे।
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