Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग-१
शरीरों की प्राप्ति हो उसे तनुनाम-कर्म कहते हैं। इस कर्म को शरीरनाम-कर्म भी कहते हैं।
४. अङ्गोपाङ्गनाम-जिस कर्म के उदय से जीव के अङ्ग (सिर, पैर आदि) और उपाङ्ग (उंगली, कपाल आदि) के आकार में पुद्गलों का परिणमन होता है, उसे अङ्गोपाङ्गनाम-कर्म कहते हैं।
५. बन्यननाम-जिस कर्म के उदय से, प्रथम ग्रहण किये हुये औदारिक आदि शरीरपुद्गलों के साथ गृह्यमाण औदारिक आदि पुद्गलों का आपस में सम्बन्ध हो, उसे बन्धननाम-कर्म कहते हैं।
६. सङ्घातननाम-जिस कर्म के उदय से शरीरयोग्य पुद्गल, प्रथम ग्रहण किये हुए शरीर-पुद्गलों पर व्यवस्थित रूप से स्थापित किये जाते हैं, उसे सङ्घातननाम-कर्म कहते हैं।
७. संहनननाम-जिस कर्म के उदय से शरीर में हाड़ों की सन्धियाँ (जोड़) दृढ़ होती हैं, जैसे कि लोहे के पट्टियों से किवाड़ मजबूत किये जाते हैं, उसे संहनननाम-कर्म कहते हैं।
८. संस्थाननाम-जिस कर्म के उदय से शरीर में हाड़ों की सन्धियाँ (जोड़) दृढ़ होती हैं, जैसे कि लोहे के पट्टियों से किवाड़ मजबूत किये जाते हैं, उसे संहनननाम-कर्म कहते हैं।
९. वर्णनाम—जिसके उदय से शरीर में कृष्ण, गौर आदि रङ्ग होते हैं, उसे वर्णनाम-कर्म कहते हैं।
१०. गन्यनाम-जिसके उदय से शरीर की अच्छी या बुरी गन्ध हो उसे गन्धनाम-कर्म कहते हैं।
११. रसनाम-जिसके उदय से शरीर में खट्टे, मीठे आदि रसों की उत्पत्ति होती है उसे रसनाम-कर्म कहते हैं।
१२. स्पर्शनाम-जिसके उदय से शरीर में कोमल, रुक्ष आदि स्पर्श हों, उसे स्पर्शनाम-कर्म कहते हैं।
१३. आनुपूर्वीनाम-जिस कर्म के उदय से जीव विग्रहगति में अपने उत्पत्ति स्थान पर पहुँचता है, उसे आनुपूर्वीनाम-कर्म कहते हैं।
आनुपूर्वीनाम-कर्म के लिए नाथ (नासा, रज्जु) का दृष्टान्त दिया गया है जैसे इधर-उधर भटकते हुए बैल को नाथ के द्वारा जहाँ चाहते हैं, ले जाते
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