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परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-२
२४३ के मत का उल्लेख किया है उसके साथ कहीं-कहीं नहीं मिलती। पहले गुणस्थान में यतिवृषभाचार्य ११२ प्रकृतियों का उदय और चौदहवें गुणस्थान में १३ प्रकृतियों का उदय मानते हैं। परन्तु कर्मग्रन्थ में पहिले गुणस्थान में ११७ प्रकृतियों का और चौदहवें गुणस्थान में १२ प्रकृतियों का उदय माना है।
कर्मग्रन्थ में दूसरे गुणस्थान में तीर्थङ्कर नामकर्म के अतिरिक्त १४७ प्रकृतियों की सत्ता मानी हुई है, परन्तु गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) में आहारकद्विक
और तीर्थङ्कर नामकर्म इन तीन प्रकृतियों के अतिरिक्त १४५ की ही सत्ता उस गुणस्थान में मानी है। इसी प्रकार गोम्मटसार (कर्मकाण्ड-३३३ से ३३६) के मतानुसार पाँचवें गुणस्थान में वर्तमान जीव को नरक-आयु की सत्ता नहीं होती
और छठे तथा सातवें गुणस्थान में नरक-आयु, तिर्यश्च-आयु दो की सत्ता नहीं होती; अतएव उस ग्रन्थ में पाँचवें गुणस्थान में १४७ की और छठे, सातवें गुणस्थान में १४६ की सत्ता मानी हुई है। परन्तु कर्मग्रन्थ के मतानुसार पाँचवें गुणस्थान में नरक-आयु की और छठे, सातवें गुणस्थान में नरक, तिर्यञ्च दो आयुओं की सत्ता भी हो सकती है।
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