Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 325
________________ २५४ गाथा-अङ्क प्राकृत. २३ ७, ३२ ६ ३ व्व व १० वण्ण ३४ वंदिय ३१ वन्न २१ वन्नचउ वइर वज्जं वा ३२,३४ २७ वि १६ विउवट्ठ विग्घ ३० १४, २८ विगल ९, २६, २७ २५ विजिण १७,३४ विणा विणु विवाग १३ ११ विह ३४ वीर Jain Education International परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २ १ वीरजिण ३ वीससय ७ वुच्छिज्ज २२ वुच्छेअ १३ वेयण २२,२४ वेयणीय १८ वेयतिग संस्कृत व इव वा वज्र वर्ज - वजें वर्ण वन्द्- वन्दित वर्ण वर्णचतुष्क वा अपि वैक्रियाष्टक विघ्न विकल विजिन बिना बिना विपाक विध वीर हिन्दी वेदनीय वेदत्रिक समान अथवा वज्रऋषभनाराचसं. छोड़कर वर्णनामकर्म वन्दन किया हुआ वर्णनामकर्म वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम और स्पर्शनामकर्म अथवा भी देवगति आदि ८ प्रकृतियाँ पृ. ११९ अन्तराय विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रियतक) जातिनामकर्म जिननामकर्म के अतिरिक्त सिवाय छोड़कर फल प्रकार श्रीमहावीर महावीरतीर्थङ्कर एक सौ बीस वीरजिन विंशतिशत वि-उत् + छिदव्युच्छिद्यन्ते व्युच्छेद वेदन विच्छेद पाते हैं। उच्छेद त्र - भोग अनुभव-: वेदनीय कर्म पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुंसक वेद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346