Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 338
________________ 222 १७ १७ १७ २ ४ १२ १८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १५ १८ ३ ३ ४ ७ ११ १२ चक्खु चरम चउ छेवद्र छनुइ छनवइ छेअ जिणचन्द जिण जुअ जिण-इक्कारस जोइ जल जंति जिणिक्कार जिण-पणग जिण-पण जोगि जयाइ तिरिदुग तिरिनराउ तित्थ तित्थयर तिरिय तरु तिरियनराउ Jain Education International परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - ३ चक्षुर्दर्शन अन्तिम चार चक्षुष् चरम चतुर सेवार्त षण्णवति षण्णवति छेद जिनचन्द्र जिन युत जिनैकादशक ज्योतिष जल यान्ति ज जिनैकादशक जिन पंचक जिन पंचक योगिन् यतादि त तिर्यद्विक तिर्यग्नरायुष् तीर्थ तीर्थंकर तिर्यच् तरु तिर्यग्नरायुष् सेवार्त संहनन नामकर्म छानवे छानवे छेदोपस्थापनीय चारित्र २६७ जिनेश्वर जिन नामकर्म सहित जिन आदि ग्यारह प्रकृतियाँ ज्योतिषी देव जलकाय पाते हैं जिन आदि ग्यारह प्रकृतियाँ जिन आदि पाँच प्रकृतियाँ जिन आदि पाँच प्रकृतियाँ सयोगिकेवली प्रमत- संयत आदि गुणस्थान तिर्यञ्च द्विक तिर्यञ्चआयु तथा मनुष्यआयु तीर्थङ्कर नामकर्म तीर्थङ्कर नामकर्म तिर्यञ्च वनस्पतिकाय तिर्यञ्च आयु तथा मनुष्य आयु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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