Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 341
________________ २७० परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-३ ~ ~ ~ 3 बन्ध-विहाण बन्धसामित्त बंधहिं बिसयरि बीअकसाय बिंति बिअ बारस बंधंति भंग भवण भव्व बन्ध-विधान बन्ध-स्वामित्व बध्नन्ति द्विसप्तति द्वितीय कषाय ब्रुवन्ति द्वितीय द्वादशन् बध्नन्ति भंग बन्ध का करना बन्धाधिकार बांधते हैं बहत्तर अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं दूसरा बारह बाँधते हैं प्रकार भवनपतिदेव 22.2M भवण भव्य भव्य मिथ्या मिच्छ मज्झागिअ मिच्छ मीस मीस-दुग मध्याकृति मिथ्या मिश्र मिश्र-द्विक मणवयजोग मणनाण मइ-सुअ १९ मिच्छ-तिग मनोवचोयोग मनोज्ञान मति-श्रुत मिथ्यात्रिक मिथ्यात्व मोहनीय बीच के संस्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थान मिश्र गुणस्थान मिश्रदृष्टि तथा अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान मन-योग तथा वचन-योग | मन:पर्यायज्ञान मति और श्रुत ज्ञान मिथ्यादृष्टि : आदि तीन गुणस्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थान के तुल्य २३ मिच्छ-सम मिथ्या-सम रिसह रयणाइ ऋषभ रत्नादि वज्र-ऋषभ-नाराच संहनन रत्नप्रभा आदि नरक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 339 340 341 342 343 344 345 346