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परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-३
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बन्ध-विहाण बन्धसामित्त बंधहिं बिसयरि बीअकसाय बिंति बिअ बारस बंधंति भंग भवण भव्व
बन्ध-विधान बन्ध-स्वामित्व बध्नन्ति द्विसप्तति द्वितीय कषाय ब्रुवन्ति द्वितीय द्वादशन् बध्नन्ति भंग
बन्ध का करना बन्धाधिकार बांधते हैं बहत्तर अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं दूसरा बारह बाँधते हैं प्रकार भवनपतिदेव
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भवण
भव्य
भव्य
मिथ्या
मिच्छ मज्झागिअ मिच्छ मीस मीस-दुग
मध्याकृति मिथ्या मिश्र मिश्र-द्विक
मणवयजोग मणनाण
मइ-सुअ १९ मिच्छ-तिग
मनोवचोयोग मनोज्ञान मति-श्रुत मिथ्यात्रिक
मिथ्यात्व मोहनीय बीच के संस्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थान मिश्र गुणस्थान मिश्रदृष्टि तथा अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान मन-योग तथा वचन-योग | मन:पर्यायज्ञान मति और श्रुत ज्ञान मिथ्यादृष्टि : आदि तीन गुणस्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थान के तुल्य
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मिच्छ-सम
मिथ्या-सम
रिसह रयणाइ
ऋषभ रत्नादि
वज्र-ऋषभ-नाराच संहनन रत्नप्रभा आदि नरक
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