Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 342
________________ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-३ २७१ ११ रत्न रयण रहिअ रत्नप्रभा रहित रहित लोभ १७ लोभ २४ लोभ कषाय मार्गणा लिखा हुआ लिहिय लिखित विमुक्त मुक्त or or or or r r»» विमुक्क वंदिय वद्धमाण वुच्छं विउव विगलतिग वज्जं विणा विण विरहिअ वन्दित्वा वर्धमान वक्ष्ये वैक्रिय विकलत्रिक वन्दन करके महावीर कहूँगा वैक्रिय विकलत्रिक छोड़ करके विना विना रहित वर्ज विना विना विरहित अपिच वन वण इव 9 ००. ० or or or xxx w w . विगल वेउव्व वेद-तिग वेयग वटुंत विकल वैक्रिय वेद-त्रिक वेदक वर्तमान वाणव्यन्तर यथा विकलेन्द्रिय वैक्रियकाययोग तीन वेद वेदक सम्यक्त्व वर्तमान २० सिरि समास ___ श्री समास Morr संक्षेप देवगति नामकर्म सूक्ष्म नामकर्म सुहम सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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