Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 344
________________ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-३ २७३ परिशिष्ट ग 'बन्धस्वामित्व' नामक तीसरे कर्मग्रन्थ की मूल गाथाएँ बंधविहाणविमुक्कं, वंदिय सिरिवद्धमाणजिणचन्दं। गइयाईसुं वुच्छं, समासओ बंधसामित्तं।।१।। जिणसुर विउवाहारदु-देवाउ य नरयसुहुम विगलतिगं। एगिदिथावरायव-नपुमिच्छं हुंडछेवट्ठ।। २।।। अणमज्झागिइ संघय-णकुखग नियइत्थिदुहग थीणतिगं। उज्जोयतिरिदुगं तिरि-नराउनरउरलदुगरिसहं।।३।। सुरइगुणवीसवज्जं, इगसउ ओहेण बंधहि निरया। तित्थ विणा मिच्छि सयं, सासणि नपु-चउ विणा छनुई ।।४।। विणु अण-छवीस मीसे, बिसयरि संमंमि जिणनराउजुया। इय रयणाइसु भंगो, पंकाइसु तित्थयरहीणो।।५।। अजिणमणुआउ ओहे, सत्तमिए नरदुगुच्च विणु मिच्छे। इगनवई सासाणे तिरिआउ नपुंसचउवज्ज।।६।। अणचउवीसविरहिआ, सनरदुगुञ्चा य सयरि मीसदुगे। सतरसउ ओहि मिच्छे, पज्जतिरिया विणु जिणाहारं (र)।।७।। विणु नरयसोल सासणि, सुराउ अणएगतीस विणु मीसे। ससुराउ सयरि संमे, बीयकसाए विणा देसे।।८।। इय चउगुणेसु वि नरा, परमजया सजिण ओहु देसाई। जिणइक्कारसहीणं, नवसउ अपजत्ततिरियनरा।।९।। निरय व्व सुरा नवरं, ओहे मिच्छे इगिदितिगसहिया। कप्पदुगे वि य एवं, जिणहीणो जोइभवणवणे।।१०।। रयणु व सणंकुमारा-इ आणयाई उज्जोयचउरहिया। अपज्जतिरिय व नवसय, मिगिदिपुढविजलतरुविगले।।११।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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