Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 340
________________ M X Ww x ४ ४ ५ ६ ८ ९ ९, ११ १० १२ १३ १४ १६ १९ २२ २२ २४ 5 ७ ११ १२ १३ १६ १७ १८ २२ निय नर निरय नपुचउ नराउ नरदुग नपुंसचउ नरय- सोल नर नवसउ (य) नवरं न नर- तिग नरतिरिआउ नव निय नरय-नव नरय-बार नेय पंकाइ पज्ज पर पुढवी पुण पणिदि पंच पढमा परिहार पम्हा Jain Education International परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - ३ नीच नर निरय नपुंसक-चतुष्क नरायुष् नर-द्विक नपुंसक - चतुष्क नरक - षोडशक नर नवशत नवरं न नर- त्रिक नर तिर्यगायुष् नवन् निज नरक-नवक नरक द्वादशक ज्ञेय पंकादि पर्याप्त नीच गोत्रकर्म मनुष्यगति नामकर्म नारक नपुंसक-चतुष्क मनुष्य आयु मनुष्य-द्विक नपुंसक - चतुष्क नरकगति आदि १६ प्रकृतियाँ मनुष्य एक सौ नौ विशेष नहीं नर - त्रिक मनुष्य आयु तथा तिर्यञ्च आयु नव अपना नरकगति आदि नव प्रकृतियाँ नरकगति आदि बारह प्रकृतियाँ जानने योग्य पंक आदि नरक पर्याप्त परन्तु पृथिवी - काय फिर २६९ पर पृथ्वी पुनर पंचेन्द्रिय पंचन् प्रथम परिहार पद्मा For Private & Personal Use Only पंचेन्द्रिय पाँच पहला परिहार विशुद्ध चारित्र पद्मलेश्या www.jainelibrary.org

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