Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 326
________________ गाथा- अङ्क प्राकृत. २३ सग २० सगवन्न ६ सगसयरि १६ सगसीइ सजोगि २,२० सट्ठि ७ सत्त १९ २६, २७ सप्तग ६ सत्तट्ठि ३ ११,१६ १३ १,२५ १० ३० २३, २४ ५, १८, ३२ १५ सय ३१ ११ १९ सयल ३१ सयोगि संघयण सत्तर- सय सतर सतर-सय सत्ता १३,१५ १८ समचउर समअ समय Jain Education International परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २ ३२, २१ संठाण २५ संत ६, २६ सम्म संघाय संजलण सम्म सम्मत्त संस्कृत स सप्तक सप्तपञ्चाशत् सप्तसप्तति सप्ताशीति सयोगिन् षष्टि सप्तन् सप्तक सप्तषष्टि सप्तदश-शत सप्तदशन् सप्तदश शत सत्ता समचतुरस्र समय सज्वलन संजलणतिग सज्वलनत्रिक समय शत सकल सयोगिन् संहनन संघातन संस्थान सत् सम्यच् सम्यच् सम्यक्त्व हिन्दी सात सतावन सतहत्तर सतासी सयोगिकेवलिगु. पृ. ८६, १२७ साठ सात सात का समुदाय सड़सठ एक सौ सत्रह सत्रह एक सौ सत्रह सत्ता - आत्मा के साथ लगे हुये कर्मों का अस्तित्व समचतुरस्र. सं. दूसरा हिस्सा न किया जा सके ऐसा सूक्ष्म काल " सौ. सब सयोगिकेवलिगु संहनन नामकर्म संघातननामकर्म २५५ सज्ज्वलनकषाय संज्वलन क्रोध, मान और माया संस्थाननामकर्म सत्ता अविरतसम्यग्दृष्टिगु. पृ. ११०,१३६ सम्यक्त्वमोहनीय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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