Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 328
________________ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-२ २५७ २५७ 'कर्मस्तव' नामक दूसरे कर्मग्रन्थ की मूलगाथायें। तह थुमिणो वीरजिणं, जह गुणठाणेसु सयलकम्माइं। बंधुदओदीरणया-सत्तापत्ताणि खवियाणि ।।१।। मिच्छे सासण-मीसे, अविरय-देसे पमत्त-अपमत्ते। नियट्टिअनियट्टि सुहुमु-वसमखीण सजोगिअजोगिगुणा ।।२।। अभिनवकम्मग्गहणं, बंधो ओहेण तत्थ वीससयं। तित्थयराहारगद्ग-वज्ज मिच्छम्मि सतरसयं ।। ३।। नरयतिग जाइथावर-चउहुंडायवछिवट्टनपुमिच्छं। सोलंतो इगहियसय, सासणि तिरिथीणदुहगतिगं ।।४।। अणमज्झागिइसंघय-णचउनिउज्जोयकुखग इत्थि त्ति। पणवीसंतो मीसे चउसयरि दुआउअअबंधा ।।५।। सम्मे सगसयरिजिणा-उबंधि वइर नरतिगबिअकसाया। उरलदुगंतो देसे, सत्तट्ठी निअकसायंतो ।।६।। तेवट्टि पमत्ते सो-ग अरइ अथिरदुग अजस अस्सायं। वुच्छिज्ज छच्च सत्त व, नेइ सुराउं जया निटुं ।।७।। गुणसट्ठि अपमत्ते, सुराउ बंधंतु जइ इहागच्छे। अन्नह अट्ठावन्ना, जं आहारगदुगं बंधे ।।८।। अडवन्न अपुव्वाइम्मि, निद्ददुगंतो छपन्न पणभागे। सुरदुगपणिदिसुखगइ तसनव उरल विणु तणुवंगा ।।९।। समचउरनिमिणजिणव-एणअगुरुलहुचउ छलंसि तीसंतो। चरमे छवीसबंधो, हासरईकुच्छभयभेओ ।।१०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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