Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 323
________________ २५२ गाथा- अङ्क प्राकृत. १७ पक्खेव २७ पदम पण ३१,९,२९ ११ पणग २७ २० पणयाल पणवन्ना ५ पणवीस ३.१ पणसीइ ९,२३ पणिदि ३३ पणिदिय पत्त २७ पप्प १,३४ २,७,१७,२४ पमत्त २४ पयडि २३ परं परम् ३२ परित २१ ३१ ११ पुम २९ पुंस परिततिग फास १, ३ बंध ३१ बंधण ८ बंधंतु २० बायाला Jain Education International २९ बार परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २ हिन्दी २२,३४ बारस २५,२८ विय ६,१५ संस्कृत प बियकसाय प्रक्षेप प्रथम पञ्चन् पञ्चक पञ्चचत्वारिंशत् पञ्चपञ्चाशत् पञ्चविंशति पञ्चशीति पञ्चेन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय प्राप्त प्र+आप्-प्राप्त प्रमत्त प्रकृति विशेषता प्रत्येक प्रत्येकत्रिक पुंस् पुंस् फ स्पर्श व बन्ध बन्धन "" बन्ध्-बध्नन् द्विचत्वारिंशत् द्वादशन् प्रक्षेप-मिलाना पहला पाँच पाँच पैतालीस पचपन पच्चीस पच्चासी पञ्चेन्द्रियजातिनाम "} प्राप्त हुआ प्राप्त करके प्रमत्तसंयतगु. पृ. ८६, ११०, ११९,१३१ प्रकृति प्रत्येकनाम प्रत्येकनाम, स्थिरनाम और शुभनामकर्म। पुरुषवेद स्पर्शनामकर्म बन्ध पृ. १ बन्धननामकर्म बाँधता हुआ बयालीस बारह "" द्वितीय द्वितीयकषाय For Private & Personal Use Only दूसरा अप्रत्याख्यानावरण www.jainelibrary.org

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