Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 321
________________ २५० परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-२ हिन्दी गाथा-अङ्क प्राकृत. संस्कृत ३ तित्थयर तीर्थङ्कर १८ तियग त्रिक २८ तियकसाय तृतीयकषाय ४,२६,२७,२८ तिरि तिर्यच १६ तिरिगइ तिर्यग्गति १६ तिरिणुपुव्वी तिर्यगानुपूर्वी २९ तिहियसय अधिकशत १०,२२ तीस त्रिंशत २९ तुरियकोह तुरीयक्रोध १९ तुरियलोभ तुरीयलोभ २१ तेय तेजस् २९ तेर त्रयोदशन् ३३ तेरस त्रयोदशन् ७ तेवद्वि त्रिषष्टि तीन का समुदाय प्रत्याख्यानावरणकषाय तिर्यञ्च तिर्यश्चगतिनामकर्म। तिर्यञ्चआनुपूर्वीना एक सौ तीन तीस संज्वलनक्रोध संज्वलनलोभ तैजसशरीरनामकर्म तेरह तिरेसठ १४,२८ थावर ४ थावरचउ स्थावर स्थावरचतुष्क स्थावरनामकर्म स्थावरनाम, सूक्ष्मनामअपर्याप्तनाम और साधारण नामकर्म। स्त्यानर्द्धिनिद्रा निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानद्धि स्तुति करते हैं। ४ धीण १७,२४ धीणतिग स्त्यानर्द्धि स्त्यानर्द्धित्रिक १ थुणिमो स्तु-स्तुमः २० दंसणचउ दर्शनचतुष्क चक्षुर्दर्शनावरण आदि ४ प्रकृतियाँ ५-दु द्वि २०,३०,३१ दुचरिम द्विचरम ३० दुनिदा द्विनिद्रा ११ दुवीस द्वाविंशति १३,२८ दुवीस-सय । द्वाविंशति-शत ३० दुसय द्विशत उपान्त्य-अन्तिम से पहला निन्द्रा और प्रचला बाईस एक सौ बाईस एक सौ दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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