________________
२४८
गाथा- अङ्क प्राकृत.
२,२० खीण
१५ खेव
२३ गइ
३१ गंधदुग
३
२३ गुण
१ गुणठाण
गुणसद्वि
१९,८
७, २२
११, २६, २७
च
चउ
२६ चउक्क
२९
१२,३०
गइण
७,१९,२१,२९
१५ चउसय
१०, २३ चरम ३३, ३४ चरिम
३२
९
चउदस
चउदंसण
Jain Education International
चउसयरि
छ
छक्क
छप्पन्न
छप्पन्न
१०
छल
१०
छवीस
१८ छसट्ठि
परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २
संस्कृत
क्षीण
क्षेप
ग
गति
गन्धद्विक
ग्रहण
गुण
गुणस्थान
एकोनषष्टि
च
च
चतुर
चतुष्क चतुर्दशन्
चतुर्दर्शन
चतुःसप्तति
चतुःशत
चरम
चरम
षष्
षट्क
षट्क
षट्पञ्चाशत
षष्ट
षड्विंशति
षट्षष्टि,
हिन्दी
क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ
गु. पृ. ८६, १२७
प्रक्षेप
गतिनामकर्स
सुरभिगन्ध और दुरभगन्ध नामकर्म ।
प्राप्ति सम्बन्ध
गुणस्थान
"
उनसठ
और
चार
चार का समुदाय चौदह
४ दर्शनावरणचक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और
केवलदर्शनावरण
चौहत्तर
एक सौ चार
अन्तिम
33
पृ. १३१
छह
छह का समुदाय
छह का समुदाय
छप्पन
छठा
छब्बीस
छियासठ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org