Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 318
________________ गाथा-अङ्क प्राकृत. २,२५ उवसम १९ उवसंतगुण ९ उवंग ३२ उवंगतिग २४ ऊण २२, ३३ २४ एसा एगयर ३ ओह ११ कम कम्म २१ कम्म २९ १,३, २५ क्रमसो ५ कुखगइ १० कच्छा २८,२९,३०,३३ खअ ३ खगइ २१ खगइदुग Jain Education International २६ खय २७ खवग ३४ खविउ १ खविय परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २ संस्कृत उपशम उपशान्तगुण उपाङ्ग उपाङ्गत्रिक ऊन ऊ ए एकतर एषा ओ ओघ क क्रम कर्मन् कर्मन् क्रमश: कुखगति कुत्सा ख क्षय खगति खगतिद्विक क्षय क्षपक क्षपयित्वा क्षपित हिन्दी उपशान्तकषायवीतराग छद्मस्थगुणस्थान पृ. ८६,१३४ 33 अङ्गोपाङ्गनामकर्म. औदारिकअङ्गोपाङ्ग, - वैक्रियअङ्गोपाङ्ग और आहारकअङ्गोपाङ्गनामकर्म. न्यून दो में एक यह सामान्य २४७ अनुक्रम. कर्म, पृ. ८५,१०४,१३४ कार्मणशरीरनामकर्म अनुक्रम से। अशुभ विहायोगतिनामकर्म । जुगुप्सामोहनीय नाश विहायोगति नामकर्म शुभविहायोगतिनामऔर अशुभविहागोगति नामकर्म । नाश क्षपकश्रेणि-प्राप्त । क्षय करके । क्षय किया हुआ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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