Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 316
________________ गाथा- अङ्क प्राकृत. १३,१४,१५ अणुदय १५ अणुपुव्वी २५ अत्तलाभ अथिर ७ अथिरदुग २१,३२ २२ ८ अन्नह २, ११, १८ अनिवृत्ति २७, ३२ अपज्जत्त १३ अपत्त २,८,१७,२३ २ अन्नयर ९,१८,२६ अपुव्व ५ अबंध २२ अपमत्त अभिनव असाअ ७ अस्साय ३२, ३३ असाय २६ अहवा अरइ अविरय Jain Education International आइ २३,२५,२६,२९ आइ २२, ३३ आइज्ज २१ ६, १६, २३ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २ हिन्दी उदीरणा नहीं करने वाला आनुपूर्वीनामकर्म स्वरूप-प्राप्ति अस्थिरनामकर्म अस्थिरनामकर्म और आउ ५ आउअ ८ आगच्छे ५ आगिइ ४, १४ आयव आइसंघयण संस्कृत अनुदीरक आनुपूर्वी आत्मलाभ अस्थिर अस्थिरद्विक अन्यतर अन्यथा अनिवृत्ति अपर्याप्त अप्राप्त अप्रमत्त अपूर्व अबन्ध अभिनव अरति अविरत असात असात असात अथवा आ अशुभ नामकर्म दो में से एक अन्य प्रकार से बादरसम्पराय गु. पृ. २० अपर्याप्तनामकर्म प्राप्त नहीं अप्रमत्तसंयतगु. पृ. ८६, ११०, ११९, १३१ अपूर्वकरणगुणस्थान पृ. ११३, १२५, १३६ बन्धाभाव नया अरतिमोहनीय अविरतसम्यग्दृष्टिगु. पृ. ८६ असातावेदनीय "" " पक्षान्तर आदि आदि आय आदिसंहनन आयुस् आयुष्क आ+ गम् आगच्छेत आकृति आतप आरम्भ वगैरह आदेयनामकर्म प्रथम-वज्रक्रषभनाराचसंहनन आगुकर्म "" आवे. संस्थाननाम आतपनामकर्म २४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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