Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 315
________________ २४४ गाथा- अङ्क प्राकृत. ४, ५, ६, ९ १०, १२, १४, १५, १८, १९, अंत २०, २३, २४, २८, ३०, २० अन्तराय १८ अंतिम १०, २८, अंस १५ अजअ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - २ ७ अजस २२,२४,३१ अजोगि अगुरुलघु २१ अगुरुलहु १०,३२, अगुरुलहुचउ अगुरुलघुचतुष्क १७, ३१ अट्ठ ८ अट्ठावण्ण २७ अडतीस २५ Jain Education International कोष ५, १४, २६ अण १२ अर्णत अ संस्कृत ८ अडवत्र अन्त अन्तराय अंतिम अंश २ अजोगिगुण अयोगिगुण अष्टन् अयत अयश: अयोगिन् अष्टपञ्चाशत् अष्टत्रिंशत् अडयाल-सय अष्टचत्वारिंशच्छत अष्टपञ्चाशत् अन अनन्त १६ अणाइज्जदुग अनादेयद्विक हिन्दी विच्छेद अन्तरायकर्म अन्त का आखरी भाग - हिस्सा अगुरुलघुनामकर्म अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, पराघातनाम और उच्छ्वास-नाकर्म । अविरतसम्यग्दृष्टिगु. पृ. ११९ अयशः कीर्त्तिनामकर्म अयोगिकेवलिगु. पृ. १२८, १३१,१३८ अयोगिकेवलिगु. पृ. ८६ आठ अट्ठावन अड़तीस एक सौ अड़तालीस अट्ठावन अनन्तानुबन्धिकषाय अन्त का अभाव अनादेयनाम और अयश:कीर्तिनामकर्म For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346