Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 317
________________ २४६ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-२ गाथा-अङ्क प्राकृत. २८ आयवदुग संस्कृत आतपद्विक हिन्दी आतपनामकर्म और उद्योतनामकर्म आहारकशरीर तथा आहारक- अङ्गोपाङ्गनाम १३ आहार आहारक १७,२४ आहारजुगल ३,८,१७ आहारगदुग आहारकद्विक आहारकद्विक १४,२८ इग २६ इगचत्तसय ३० इगसअ १७ इगसी ४ इगहिय-सय १४ इगारसय ११ इगेग २९ इत्थी ८ इह एक एकेन्द्रियजातिना एकचत्वारिंशच्छत एक सौ इकतालीस एकशत एक सौ एक एकाशीति एक्यासी एकाधिकशत एक सौ एक एकादशशत एक सौ ग्यारह एकैक एक-एक स्त्रीवेद इस जगह इह उच्च १२,२३ उच्च १२ उच्छेअ ५,१६ अज्जोय १३,१५,२३ उदअ । उच्छेद उद्योत उदय उच्चैगोत्र विच्छेद उद्योत उदय, कर्म-फल का अनुभव- पृ.११८,११९, १३१ १,२१ उदय १३ उदीरण उदय उदीरणा उदीरणा-विपाक-काल प्राप्त-न होने पर भी प्रयत्न विशेष-से किया जानेवाला कर्म-फलका अनुभव। २,३ उदीरणा ९,२१ उरल उरलदुग उदीरणा औदार औदारद्विक औदारिकशरीरना औदारिकशरीर और औदारिक अङ्गोपाङ्गनामकर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346