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कर्मग्रन्थभाग- ३
१८९
अर्थ - प्रथम तीन - कृष्ण, नील, कापोत- लेश्याओं में आहारिक- द्विक को छोड़ १२० में से शेष ११८ प्रकृतियों का ओघ - सामान्य-बन्ध स्वामित्व है। मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थङ्कर नामकर्म के अन्तर्गत ११८ में से शेष ११७ का बन्ध-स्वामित्व है और सास्वादन आदि अन्य सब- दूसरा, तीसरा, चौथा तीनगुणस्थानों में ओघ (बन्धाधिकार के समान) प्रकृति-बन्ध है || २१ ॥
भावार्थ - लेश्यायें ६ हैं - (१) कृष्ण, (२) नील, (३) कापोत, (४) तेज, (५) पद्म और (६) शुक्ल ।
कृष्ण आदि तीन लेश्या वाले आहारक-द्विक को इस कारण बाँध नहीं सकते कि वे अधिक से अधिक छः गुणस्थानों में वर्तमान माने जाते हैं; पर आहारक-द्विक का बन्ध सातवें के अतिरिक्त अन्य गुणस्थानों में नहीं होता । अतएव वे सामान्यरूप से ११८ प्रकृतियों के, पहले गुणस्थान में तीर्थङ्कर नामकर्म के अतिरिक्त ११७ प्रकृतियों के, दूसरे में १०१, तीसरे में ७४ और चौथे में ७७ प्रकृतियों के बन्धाधिकारी हैं || २१ ||
१. 'अधिक से अधिक' कहने का मतलब यह है कि यद्यपि इस कर्मग्रन्थ ( गाथा २४ ) में कृष्ण आदि तीन लेश्या वाले ४ गुणस्थानों के ही अधिकारी माने गये हैं, पर चौथे कर्मग्रन्थ (गाथा २३) में उन्हें ६ गुणस्थानों का अधिकारी बतलाया है।
२. चौथे गुणस्थान के समय कृष्ण आदि तीन लेश्याओं में ७७ प्रकृतियों का बन्धस्वामित्व 'साणासु सव्वहिं ओहो इस कथन से माना हुआ है।
इसका उल्लेख प्राचीन बन्ध-स्वामित्व में स्पष्टरूप से है'सुरनरआउयसहिया, अविरयसम्माउ होति नायव्वा । तित्थयरेण जुया तह, तेऊलेसे परं वीच्छं । । ४२।।'
इससे यह बात स्पष्ट है कि उक्त ७७ प्रकृतियों में मनुष्य आयु की तरह देव - आयु की गिनती है। गोम्मटसार में बन्धोदयसत्त्वाधिकार की गाथा ११९ वीं वेद-मार्गणा से लेकर आहारक- मार्गणा पर्यन्त सब मार्गणाओं का बन्ध-स्वामित्व गुणस्थान के समान कहा है। इन मार्गणाओं में लेश्या - मार्गणा का समावेश है। इससे कृष्ण आदि तीन लेश्याओं का चतुर्थ गुणस्थान- सम्बन्धी ७७ प्रकृतियों का बन्धस्वामित्व, गोम्मटसार को भी अभिमत है। क्योंकि उसके बन्धोदयसत्त्वाधिकार की गा. १०३ में चौथे गुणस्थान में ७७ प्रकृतियों का बन्ध स्पष्टरूप से माना हुआ है।
इस प्रकार कृष्ण आदि तीन लेश्या के चतुर्थ गुणस्थान- सम्बन्धी बन्धस्वामित्व के विषय में कर्मग्रन्थ और गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) दोनों का कोई मतभेद नहीं है। परन्तु इस पर श्री जीवविजयजी ने और श्री जयसोमसूरि ने इस गाथा के अपने २ टब्बे में एक शंका उठाई है, वह इस प्रकार है
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