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कीर्तिनामकर्म है। एक दिशा में फैलने वाली ख्याति को कीर्ति और सब दिशाओं में फैलने वाली ख्याति को यश: कहते हैं। इसी तरह दान-पुण्य - आदि से होनेवाली महत्ता को यश: कहते हैं। कीर्ति और यश: का सम्पादन यशः कीर्तिनामकर्म से होता है।
परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - १
कुछ संज्ञाएँ ऐसी भी हैं जिनके स्वरूप में दोनों सम्प्रदायों में किञ्चित् परिवर्तन हो गया है—
श्वेताम्बर
सादि, साचिसंहनन।
ऋषभनाराच।
कीलिका । सेवार्त ।
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दिगम्बर
स्वाति संहनन ।
वज्रनाराचसंहनन।
किलित । असंप्राप्तासृपाटिका ।
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