Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 302
________________ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग - १ कोष के सम्बन्ध में कुछ सूचनाएँ १. जिस शब्द के अर्थ के साथ पृ. नं. दिया गया है वहाँ समझना कि उस शब्द का विशेष अर्थ है और वह उस नं. के पृष्ठ पर लिखा हुआ है। २. जिस शब्द के साथ (दे.) अक्षर है वहाँ समझना चाहिए कि वह शब्द देशीय प्राकृत है। ३. जिस प्राकृत क्रियापद के साथ संस्कृत धातु दिया है, वहाँ समझना कि वह प्राकृत रूप संस्कृत धातु के प्राकृत आदेश से बना है। ५. २३१ ४. जिस जगह प्राकृत क्रियापद की छाया के साथ संस्कृत प्राकृत निर्दिष्ट की है, वहाँ समझना कि प्राकृत क्रियापद संस्कृत क्रियापद ऊपर से ही बना है; आदेश से नहीं। Jain Education International तदादि सर्वनाम के प्राकृत रूप सविभक्तिक ही दिये हैं। साथ ही उनकी मूल प्रकृति का इसलिये उल्लेख किया है कि ये रूप अमुक प्रकृति के हैं यह सहज में जाना जा सके। ॥ इति पहले कर्मग्रन्थ का हिन्दी अर्थ - सहित कोष || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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