Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 308
________________ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-१ २३७ दंसणमोहं जिणमुणि चेइयसंघाइपडिणीओ ।।५६।। दुविहं पि चरणमोहं, कसायहासाइविसयविवसमणो । बंधइ निरयाउ महा-रंभपरिग्गइरओ रुद्दो ।। ५७।। तिरियाउ गूढहियओ, सढो ससल्लो तहा मणुस्साउ। पयईह तणुकसाओ, दाणरुई मज्झिममुणो य ।। ५८।। अविरयमाइ सुराउं, बालतवोकामनिज्जरो जयइ । सरलो अगारविल्लो, सुहनामं अन्नहा असुहं ।।५९।। गुणपेही मयरहियो, अज्जयणज्झावणारुई निच्चं । पकुणइ जिणाइभत्तो, उच्चं नीयं इयरहा उ ।।६।। जिणपूयाविग्धकरो, हिंसाइपरायणो जयइ विग्धं ।। इय कम्मविवागोऽयं, लिहियो देविंदसूरीहिं ।।६१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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