Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 299
________________ २२८ परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-१ संस्कृत विंशतिधा गाथा-अङ्क प्राकृत ५ वीसहा २२ वेअ ३ वेय १२ वेयणिय वेद वेथ हिन्दी बीस प्रकार का वेदमोहनीय पृ. ३७ वेदनीयकर्म पृ. ६ वेदनीयकर्म पृ. २३ वेदनीय संख्या सङ्ग संहनन संहनन सङ्गात सङ्घात २८,२९ संखा ५६ संघ २४ संघयण ३८ संघयण ७ संघाय ३१,३६ संघाय २४ संघायण १७ संजलण २४,४० संठाण संत ६ संनि ३५ संबंध सङ्कातन संज्वलन संस्थान गिनती साधु आदि चतुर्विध संघ संहननामकर्म पृ. ३९ हाड़ों की रचना श्रुतज्ञान-विशेष पृ. १४ संघातनामकर्म पृ. ४५,५२ संघातननामकर्म पृ. ३९ संज्वलन कषाय पृ. ३१ संस्थाननामकर्म पृ. ३९,५६ सत्ता मनवाला पृ. ११ संयोग सम्यग्दृष्टि संवर तत्त्व पृ. २७ सत् संज्ञिन् सम्बन्ध सम्यच् संवर १५ संवर ३६ (संxहन्) संघायइ ३७ सग ५८ सढ ४८ सतणु २३,३२ सत्तट्ठि ३२ सत्ता २१ सनिमित्त ६ सपज्जवसिय ६ सपडिवक्ख १४,३२ सम्म संघातयति स्वक शठ स्वतनु सप्त सप्तषष्टि सत्ता सनिमित्त सपर्यवसित सप्रतिपक्ष सम्यक् इकट्ठा करता है स्वीय अपना धूर्त अपना शरीर सात सड़सठ कर्म का स्वरूप से अप्रच्यव सहेतुक अन्त सहित विरोधि सहित सम्यक्त्वमोहनीय पृ. २५,४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346