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परिशिष्ट कर्मग्रन्थ भाग-१
गाथा-अङ्क प्राकृत
३८ छद्धा ५,८ छहा ३९ छेवट्ट
संस्कृत षड्धा षट्ठा सेवार्त
हिन्दी छह प्रकार का छह प्रकार का सेवार्तसंहनन पृ. ५४
ज
यति
जतु
४६ जइ ३५ जउ ५० जण
४७ (जन्) ५४,५९,६१ जयइ
१९ जल ४५ जलण
जव्वस २६,५१ जस
यद्वश
यशस्
५१ जसकित्ती १६,५३ जहा २४,३३ जाइ
१८ जाजीव १,२१,५४ जिअ ५६,६०,६१ जिण
१६ जिणधम्म
१५ जिय ४५,४६ जियंग
४९ जीय ४७,५३ जीव
५५ जुआ ३७,४४ जुत्त ३१,४३,४५ जुय
४६ जोइस
साधु
लाख जन
लोक जायइ जायते होता है जि-जयति बाँधता है जल
पानी ज्वलन
अग्नि-आग जिस के वश यश:कीर्तिनामकर्म
पृ. ४२,६८ यश:कीर्ति बड़ाई यथा जिस प्रकार जाति जातिनामकर्म पृ. ३९,४८ यावज्जीव जीवनपर्यन्त जीव
आत्मा जिन
वीतराग जिनधर्म जैनधर्म जीव जीव-तत्त्व २७ जीवाङ्ग जीव का शरीर
जीव पृ. ६५ जीव
सहित
सहित युत ज्योतिष चन्द्र, नक्षत्र आदि ज्योतिष
मण्डल संयम पृ. ७७
जीव
आत्मा
युक्त
सहित
५५ जोग
योग
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