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३.
कर्मग्रन्थभाग- २
(५) निद्रा, (६) निद्रा निद्रा, (७) प्रचला, (८) प्रचलाप्रचला और (९) स्त्यानर्द्धि ।
वेदनीय की २ प्रकृतियाँ, जैसे – (१) सातावेदनीय और (२) असातावेदनीय।
मान,
४. मोहनीय की २६ प्रकृतियाँ, जैसे—मिथ्यात्वमोहनीय (१), अनन्तानुबन्धि-क्रोध, अनन्तानुबन्धि-मान, अनन्तानुबन्धि-माया, अनन्तानुबन्धि-लोभ (४), अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध, अप्रत्याख्यानावरणअप्रत्याख्यानावरण- माया, अप्रत्याख्यानावरण-लोभ (४), प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण- मान, प्रत्याख्यानावरणमाया, प्रत्याख्यानावरण- लोभ (४), संज्वलनक्रोध, संज्वलनमान, संज्वलनमाया, संज्वलनलोभ (४), स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद (३), हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा (६)।
५.
आयु-कर्म की ( ४ ) - प्रकृतियाँ, जैसे – (१) नारक-आयु, (२) तिर्यञ्चआयु, (३) मनुष्य-आयु और ( ४ ) - देव - आयु |
जैसे- (१)
६. नामकर्म की ६७ - प्रकृतियाँ नरकगतिनामकर्म, तिर्यञ्चगतिनामकर्म, मनुष्यगतिनामकर्म और देवगतिनामकर्म, ये चार गतिनामकर्म (२) एकेन्द्रियजातिनामकर्म द्वीन्द्वियजातिनामकर्म त्रीन्द्रियजातिनामकर्म, चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म और पञ्चेन्द्रियजातिनामकर्म, ये पाँच जातिनामकर्म (३) औदारिकशरीरनामकर्म वैक्रियशरीरनामकर्म, आहारकशरीरनामकर्म, तैजसशरीरनामकर्म और कार्मणशरीरनामकर्म ये पाँच शरीरनामकर्म । ( ४ ) औदारिक अङ्गोपाङ्गनामकर्म, वैक्रियअङ्गोपाङ्गनामकर्म और आहारकअङ्गोपाङ्गनामकर्म ये तीन अङ्गोपाङ्गनामकर्म (4)1 वज्रऋषभनाराचसंहनननामकर्म, ऋषभनाराचसंहनननामकर्म । नाराचसंहनननामकर्म, अर्धनाराचसंहनननामकर्म, कीलिकासंहनननामकर्म, सेवार्थसंहनननामकर्म — ये छः संहनननामकर्म (६) समचतुरस्र संस्थाननामकर्म, न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्म, सादिसंस्थाननामकर्म, वामनसंस्थाननामकर्म, कुब्जसंस्थाननामकर्म और हुण्डसंस्थाननामकर्म ये छः संस्थाननामकर्म (७) वर्णनामकर्म (८) गन्धनामकर्म ( ९ ) रसनामकर्म (१०) स्पर्शनामकर्म (११) नरकानुपूर्वीनामकर्म, तिर्यगानुपूर्वीनामकर्म, मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म और देवानुपूर्वीनामकर्म- ये चार आनुपूर्वीनामकर्म (१२) शुभविहायोगतिनामकर्म और अशुभविहायोगतिनामकर्म ये दो
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