Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग-२
मनुष्य-भव-योग्य-कर्म-प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता। किन्तु देव-भव-योग्य कर्मप्रकृतियों का ही बन्ध होता है। इस प्रकार वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन और
औदारिकद्विक अर्थात् औदारिक शरीर तथा औदारिक अङ्गोपाङ्ग इन तीन कर्मप्रकृतियों का बन्ध भी पाँचवें आदि गुणस्थानों में नहीं होता; क्योंकि वे तीन कर्म-प्रकृतियाँ मनुष्य के अथवा तिर्यञ्च के जन्म में ही भोगने योग्य हैं और पञ्चमआदि गुणस्थानों में देव के भव में भोगी जा सकें ऐसी कर्म-प्रकृतियों का ही बन्ध होता है। इस तरह चौथे गुणस्थान में जिन ७७ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध होता है उनमें से वज्रऋषभ-नाराच-संहनन-आदि उक्त १० कर्म-प्रकृतियों के घटा देने से शेष ६७ कर्म-प्रकृतियों का ही बन्ध पाँचवें गुणस्थानक में होता है।
प्रत्याख्यानावरण-क्रोध, प्रत्याख्यानावरण-मान, प्रत्याख्यानावरण-माया और प्रत्याख्यानावरण-लोभ इन चार कषायों का बन्ध पञ्चम-गुणस्थान के चरम समय तक ही होता है, आगे के गुणस्थानों में नहीं होता; क्योंकि छठे आदि गुणस्थानों में उन कषायों का उदय ही नहीं है। इसलिये पाँचवें गुणस्थान की बन्ध-योग्य ६७ कर्म-प्रकृतियों में से, प्रत्याख्यानावरणक्रोध-आदि उक्त चार कषायों को छोड़कर शेष ६३ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध छठे गुणस्थान में माना जाता है।
__सातवें गुणस्थान को प्राप्त करनेवाले जीव दो प्रकार के होते हैं। एक तो वे जो छठे गुणस्थान में देव-आयु के बन्ध का प्रारम्भ कर, उसे उस गुणस्थान में समाप्त किये बिना ही सातवें गुणस्थान को प्राप्त करते हैं, और फिर सातवें गुणस्थान में ही देव-आयु के बन्ध को समाप्त करते हैं तथा दूसरे वे, जो देवआयु के बन्ध का प्रारम्भ तथा उसकी समाप्ति दोनों छठे गुणस्थान में ही करते हैं और अनन्तर सातवें गुणस्थान को प्राप्त करते हैं। पहले प्रकार के जीवों को छठे गुणस्थान के अन्तिम-समय में अरति, शोक, अस्थिरनाम-कर्म, अशुभनामकर्म, अयश:कीर्तिनाम-कर्म और असातावेदनीय इन छ: कर्म-प्रकृतियों का बन्धविच्छेद होता है और दूसरे प्रकार के जीवों को छठे गुणस्थान के अन्तिम समय में उक्त ६ कर्म-प्रकृतियाँ तथा देव-आयु, कुल ७ कर्म-प्रकृतियों का बन्धविच्छेद होता है। अतएव छठे गुणस्थान की बन्ध-योग्य ६३ कर्म-प्रकृतियों में से अरति, शोक-आदि उक्त ६ कर्म-प्रकृतियों के घटा देने पर, पहले प्रकार के जीवों के लिये सातवें गुणस्थान में बन्ध योग्य ५७-कर्म-प्रकृतियाँ शेष रहती हैं और अरति, शोक-आदि उक्त ६ तथा देव-आयु, कुल ७ कर्म-प्रकृतियों के घटा देने पर दूसरे प्रकार के जीवों के लिये सातवें गुणस्थान में बन्ध-योग्य ५६
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