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कर्मग्रन्थभाग-२
(२४), रस (२५) और स्पर्शनामकर्म (२६), अगुरुलघुचतुष्क; जैसेअगुरुलधुनामकर्म (२७) उपघातनामकर्म (२८) पराघातनामकर्म (२९), और उच्छ्वासनामकर्म (३०) ये नामकर्म की ३० प्रकृतियाँ आठवें गुणस्थान के छठे भाग तक ही बाँधी जाती हैं। इससे आगे नहीं। अतएव पूर्वोक्त ५६ कर्म-प्रकृतियों में से नाम-कर्म की इन ३० प्रकृतियों के घटा देने पर शेष २६-कर्म-प्रकृतियों का ही बन्ध आठवें गुणस्थान के सातवें भाग में होता है। हास्य, रति, जुगुप्सा और भय इन नो-कषाय-मोहनीयकर्म की चार प्रकृतियों का बन्ध-विच्छेद आठवें गुणस्थान के सातवें भाग के अन्तिम समय में हो जाता है। इससे उन ४ प्रकृतियों का बन्ध नौवें आदि गुणस्थानों में नहीं होता।।१०।।
अतएव पूर्वोक्त २६-कर्म-प्रकृतियों में से हास्य-आदि उक्त चार प्रकृतियों को घटाकर शेष कर्म-प्रकृतियों का बन्ध नौवें गुणस्थान के पहले भाग में होता है। पुरुषवेद, संज्वलन-क्रोध, संज्वलन-मान, संज्वलन-माया और संज्वलनलोभ इन पाँच प्रकृतियों में से एक-एक प्रकृति का बन्ध-विच्छेद क्रमश: नौवें गुणस्थान के पाँच भागों में से प्रत्येक भाग के अन्तिम समय में होता है, जैसे-- पूर्वोक्त २२ कर्म-प्रकृतियों में से पुरुष-वेद का बन्ध-विच्छेद नौवें गुणस्थान के पहले भाग के अन्तिम समय में हो जाता है। इससे शेष २१ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध दूसरे भाग में हो सकता है। इन २१ कर्म-प्रकृतियों में से संज्वलन-क्रोध का बन्ध-विच्छेद दूसरे भाग के अन्तिम समय में हो जाता है। इससे शेष २०कर्म-प्रकृतियों का बन्ध तीसरे भाग में हो सकता है। इन २० कर्म-प्रकृतियों में से संज्वलनमान का बन्ध तीसरे भाग के अन्तिम-समय तक ही हो सकता है, आगे, नहीं; इसी से शेष १९ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध, चौथे भाग में होता है। तथा इन १९ कर्म-प्रकृतियों में से संज्वलन माया चौथे भाग के अन्तिम-समय तक ही बाँधी जाती है, आगे नहीं। अतएव शेष १८ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध नौवें गुणस्थान के पाँचवें भाग में होता है। इस प्रकार इन १८ कर्म-प्रकृतियों में से भी संज्वलन-लोभ का बन्ध नौवें गणस्थान के पाँचवें भाग-पर्यन्त ही होता है, आगे दसवें आदि गुणस्थानों में नहीं होता। अतएव उन १८ कर्म-प्रकृतियों में से संज्वलन लोभ को छोड़कर शेष १७ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध दसवें गुणस्थान में होता है।।११॥
भावार्थ—सातवें गुणस्थान से लेकर आगे के सब गुणस्थानों में परिणाम इतने स्थिर और शुद्ध हो जाते हैं कि जिससे उन गुणस्थानों में आयु का बन्ध नहीं होता। यद्यपि सातवें गुणस्थान में ५९ कर्म-प्रकृतियों के बन्ध का भी पक्ष
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