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कर्मग्रन्थभाग-३
१७९
आहारकलब्धि से आहारक शरीर को रचने के समय अर्थात् छठे गुणस्थान में औदारिक-मिश्र-काययोग सिद्धान्त में माना है।
औदारिक-मिश्र-काययोग में ४ गुणस्थान मानने वाले कार्मग्रन्थिक विद्वानों का तात्पर्य इतना ही जान पड़ता है कि 'कार्मण शरीर और औदारिक शरीर दोनों की मदद से होने वाले योग को 'औदारिक-मिश्र-काययोग' कहना चाहिये जो पहले, दूसरे चौथे और तेरहवें इन ४ गुणस्थानों ही में पाया जा सकता है।' पर सैद्धान्तिकों का आशय यह है कि जिस प्रकार कार्मण शरीर को लेकर
औदारिक-मिश्रता मानी जाती है, इसी प्रकार लब्धिजन्य वैक्रियशरीर या आहारक शरीर के साथ भी औदारिक शरीर की मिश्रता मानकर औदारिकमिश्र काययोग मानने में कुछ बाधा नहीं है।
कार्मणकाययोग वाले जीवों में पहला, दूसरा, चौथा और तेरहवाँ ये ४ गुणस्थान पाये जाते हैं। इनमें से तेरहवाँ गुणस्थान केवलीसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में केवली भगवान् को होता है। शेष तीन गुणस्थान अन्य जीवों को अन्तराल गति के समय तथा जन्म के प्रथम समय में होते हैं। ____ कार्मण काययोग का बन्ध-स्वामित्व, औदारिक-मिश्र-काययोग के समान है, पर इसमें तिर्यश्च आयु और मनुष्य आयु का बन्ध नहीं हो सकता। अतएव इसमें सामान्यरूप से ११२, पहले गुणस्थान में १०७, दूसरे में ९४, चौथे
१. इस मत की सूचना चौथे कर्मग्रन्थ में 'सासण भावे नाणं, विउव्व गाहारगे उरलमिस्सं।'
गाथा ४९ वी में है, जिसका खुलासा इस प्रकार है'यदा पुनरौदारिकशरीरी वैक्रियलब्धि-सम्पन्नो मनुष्य : पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिको वा पर्याप्तबादरवायुकायिको वा वैक्रियं करोति तदौदारिक शरीरयोग एव वर्तमानः प्रदेशान् विक्षिप्य वैक्रियशरीरयोग्यान् पुद्गलानादाय यावद्वैक्रियशरीरपर्याप्त्या पर्याप्ति न गच्छति तावद्वैक्रियेण मिश्रता, व्यपदेश औदारिकस्य, प्रधानत्वात्। एवमाहारकेणापि सह मिश्रता द्रष्टव्या, आहारयति चैतेनैवेति तस्यैव व्यपदेश इति।' अर्थात् औदारिकशरीर वाला-वैक्रियलब्धिधारक मनुष्य, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च या बादरपर्याप्त वायुकायिक जिस समय वैक्रिय शरीर रचता है उस समय वह औदारिक शरीर में रहता हुआ अपने प्रदेशों को फैला कर और वैक्रिय शरीर-योग्य पुद्गलों को लेकर जब तक वैक्रिय शरीर-पर्याप्ति को पूर्ण नहीं करता है, तब तक उसके औदारिककाययोग की वैक्रियशरीर के साथ मिश्रता है, परन्तु व्यवहार औदारिक को लेकर औदारिक-मिश्रता का करना चाहिये; क्योंकि उसी की प्रधानता है। इसी प्रकार आहारक शरीर करने के समय भी उसके साथ औदारिक काययोग की मिश्रता को जान लेना चाहिये।
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