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कर्मग्रन्थभाग-२
तीसरे गुणस्थान में उदय और उदीरणा दोनों ही सौ-सौ कर्म-प्रकृतियों के होते हैं। चौथे गुणस्थान में उदय १०४ कर्म-प्रकृतियों का और उदीरणा भी १०४ कर्म-प्रकृतियों की होती है। पाँचवें गुणस्थान में ८७ कर्म-प्रकृतियों का उदय और ८७ कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा होती है तथा छठे गुणस्थान में उदय-योग्य भी ८१ कर्म-प्रकृतियाँ और उदीरणा-योग्य भी ८१ ही कर्म-प्रकृतियाँ होती हैं। परन्तु सातवें गुणस्थान से लेकर तेरहवें पर्यन्त सात गुणस्थानों में उदय-योग्य-कर्मप्रकृतियों की तथा उदीरणा-योग्य-कर्म-प्रकृतियों की संख्या समान नहीं है। किन्त उदीरणा-योग्य-कर्म-प्रकृतियाँ उदय योग्य-कर्म-प्रकृतियों से तीन-तीन कम होती हैं। इसका कारण यह है कि छठे गुणस्थान के अन्तिम समय में उदय-विच्छेद आहारकद्विक और स्त्यानर्द्धित्रिक-इन पाँच प्रकृतियों का ही होता है। परन्तु उदीरणा-विच्छेद उक्त ५ प्रकृतियों के अतिरिक्त वेदनीयद्विक तथा मनुष्य-आयुइन तीन प्रकृतियों का भी होता है। छठे गुणस्थान से आगे के गुणस्थानों में ऐसे अध्यवसाय नहीं होते जिनसे कि वेदनीयद्विक की तथा आय की उदीरणा हो सके। इससे सातवें-आदि गुणस्थानों में उदय-योग्य तथा उदीरणा-योग्य कर्मप्रकृतियों की संख्या इस प्रकार होती है-सातवें गणस्थान में उदय ७६ प्रकृतियों का और उदीरणा ७३ प्रकृतियों की। आठवें गुणस्थान में उदय ७२ प्रकृतियों का और उदीरणा ६९ प्रकृतियों की। नौवें गुणस्थान में उदय ६६ कर्म-प्रकृतियों का और उदीरणा ६३ कर्म-प्रकृतियों की। दसवें में उदय-योग्य ६० कर्म-प्रकृतियाँ
और उदीरणा-योग्य ५७ कर्म-प्रकृतियाँ। ग्यारहवें में उदय-योग्य ५९ कर्मप्रकृतियाँ और उदीरणा-योग्य ५७ कर्म-प्रकृतियाँ और उदीरणा-योग्य ५४ कर्मप्रकृतियाँ। उसी गुणस्थान के अन्तिम-समय में उदय-योग्य ५५ कर्म-प्रकृतियाँ
और उदीरणा-योग्य ५२ कर्म-प्रकृतियाँ तथा तेरहवें गुणस्थान में उदय-योग्य ४२ कर्म-प्रकृतियाँ और उदीरणा-योग्य ३९ कर्म-प्रकृतियाँ हैं। चौदहवें गुणस्थान में किसी भी कर्म की उदीरणा नहीं होती; क्योंकि उदीरणा के होने में योग की अपेक्षा है, पर उस गुणस्थान में योग का सर्वथा निरोध ही हो जाता है।।२४।।
॥ इति।। उदीरणाधिकार समाप्तः
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