Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग- ३
१५९
पर्याप्त तिर्यञ्चों को मिश्रगुणस्थान में होता है। चौथे गुणस्थान में उनका देवा आयु के बंध का सम्भव होने के कारण ७० प्रकृतियों का बंध माना जाता है ।
परन्तु पाँचवें गुणस्थान में उनको ६६ प्रकृतियों का बंध माना गया है; क्योंकि उस गुणस्थान में ४ अप्रत्याख्यानावरण कषाय का बंध नहीं होता । अप्रत्याख्यानावरण-कषाय का बंध पाँचवें गुणस्थान से लेकर आगे के गुणस्थानों में न होने का कारण यह है कि 'कषाय के बंध का कारण कषाय का उदय है।' जिस प्रकार के कषाय का उदय हो उसी प्रकार के कषाय का बंध हो सकता है। अप्रत्याख्यानावरण-कषाय का उदय पहले चार ही गुणस्थानों में है, आगे नहीं, अतएव उसका बंध भी पहले चार ही गुणस्थानों में होता है || ८ ॥
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