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कर्मग्रन्थभाग-३
करना पढ़ने वालों के लिए लाभदायक है वह सब कर्मकाण्ड में है। तीसरे कर्मग्रन्थ में मार्गणाओं में केवल बन्ध-स्वामित्व वर्णित है परन्तु कर्मकाण्ड में बन्धस्वामित्व के अतिरिक्त मार्गणाओं को लेकर उदय-स्वामित्व, उदीरणा-स्वामित्व
और सत्ता-स्वामित्व भी वर्णित है। (इसके विशेष खुलासे के लिये परिशिष्ट (क) नं. १ देखें)। इसलिए तीसरे कर्मग्रन्थ के अभ्यासियों को उसे अवश्य देखना चाहिये। तीसरे कर्मग्रन्थ में उदय-स्वामित्व आदि का विचार इसलिए नहीं किया जान पड़ता है कि दूसरे और तीसरे कर्मग्रन्थ के पढ़ने के बाद अभ्यासी उसे स्वयं सोच ले। परन्तु आजकल तैयार विचार को सब जानते हैं; स्वतन्त्र विचार कर विषय को जानने वाले बहुत कम देखे जाते हैं। इसलिए कर्मकाण्ड की उक्त विशेषता से सब अभ्यासियों को लाभ उठाना चाहिये।
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