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गुणस्थानों के
नाम
ओघ से मिथ्यात्व में
सास्वादन में
मिश्र में
अविरत में
सामान्य नरक का तथा रत्नप्रभादि नरक-त्रय का बन्धस्वामित्व - यन्त्र ।
बन्ध्य - प्रकृतियाँ १
१०१ १९
१००
९६
७०
अबन्ध्य - प्रकृतियाँ २
७२
२०
२४
५०
४८
विच्छेद्य - प्रकृतियाँ ३ |
१
४
२६
O
O
ज्ञानावरणीय
५
५
५
५
दर्शनावरणीय
९
९
९
६
वेदनीयकर्म
मोहनीयकर्म
२
२
२
२
२
२६
२६
२४
१९
१९
२
२
२
०
१
५०
४९
४७
३२
३३
गोत्रकर्म
२
२
२
१
१
अन्तरायकर्म
मूल-प्रकृतियाँ ; ; ;
35
५
५
५
७-८
७
७-८
१. बाँधने योग्य, २. नहीं बांधने योग्य, ३. बंध-विच्छेद योग्य, अबन्ध्य और बंधविच्छेद में अन्तर यह है कि किसी विवक्षितं गुणस्थान की अबन्ध्य प्रकृतियाँ वे हैं जिनका बंध उस गुणस्थान में नहीं होता जैसे- नरकगति में मिथ्यात्व गुणस्थान में २० प्रकृतियाँ अबन्ध्य हैं। परंतु विवक्षित गुणस्थान की बन्ध-विच्छेद्य प्रकृतियां वे हैं जो उस गुणस्थान में बांधी जाती है पर आगे के गुणस्थान में नहीं बांधी जातीं जैसे- नरकगति में मिथ्यात्व गुणस्थान की बन्ध-विच्छेद्य प्रकृतियाँ चार हैं। इसका मतलब यह है कि उन प्रकृतियों का बन्ध मिथ्यात्व गुणस्थान में तो होता है पर आगे के गुणस्थान में नहीं।
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कर्मग्रन्थभाग-३