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कर्मग्रन्थभाग-२ है। इन ५९ कर्म-प्रकृतियों में से ऋषभनाराचसंहनन और नाराचसंहनन इन दो कर्म-प्रकृतियों का उदय, ग्यारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय-पर्यन्त ही होता है।।१९।।
भावार्थ-जो मुनि, सम्यक्त्वमोहनीय का उपशम या क्षय करता है वही सातवें गुणस्थान से आगे के गुणस्थानों को पा सकता है, दूसरा नहीं। इसी में ऊपर कहा गया है कि सातवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक में सम्यक्त्व मोहनीय का उदय-विच्छेद हो जाता है। इस प्रकार अर्द्धनाराच, कीलिका और सेवार्त इन तीन अन्तिम संहननों का उदय-विच्छेद भी सातवें गुणस्थान के अन्त तक हो जाता है—अर्थात् अन्तिम तीन संहननवाले जीव, सातवें गुणस्थान से आगे नहीं बढ़ सकते। इसका कारण यह है कि जो श्रेणि कर सकते हैं वे ही आठवें आदि गुणस्थानों को प्राप्त कर सकते हैं परन्तु श्रेणि को प्रथम तीन संहननवाले ही कर सकते हैं, अन्तिम तीन संहननवाले नहीं। इसी से उक्त सम्यक्त्व मोहनीय आदि ४ कर्म-प्रकृतियों को सातवें गुणस्थान की ७६ कर्मप्रकृतियों में से घटाकर शेष ७२ कर्म-प्रकृतियों का उदय आठवें गुणस्थान में माना जाता है।
नौवें गुणस्थान से लेकर आगे के गुणस्थानों में अध्यवसाय इतने विशुद्ध हो जाते हैं कि जिससे गुणस्थानों में वर्तमान जीवों को हास्य, रति आदि उपर्युक्त ६ कर्म-प्रकृतियों का उदय होने नहीं पाता। अतएव कहा गया है कि आठवें गुणस्थान की उदय-योग्य ७२ कर्म-प्रकृतियों में से हास्य-आदि ६ प्रकृतियों को छोड़कर शेष ६६ कर्म-प्रकृतियों का उदय नौवें गुणस्थान में हो सकता है।
नौवें गुणस्थान के प्रारम्भ में ६६ कर्म-प्रकृतियों का उदय होता है। परन्तु अध्यवसायों की विशुद्धि बढ़ती ही जाती है। इससे तीन वेद और संज्वलनत्रिक, कुल ६ कर्म-प्रकृतियों का उदय नौवें गुणस्थान में ही क्रमशः रुक जाता है । अतएव दसवें गुणस्थान में उदय-योग्य प्रकृतियाँ ६० ही रहती हैं। नौवें गुणस्थान में वेदत्रिक-आदि उक्त ६ कर्म-प्रकृतियों का उदय विच्छेद इस प्रकार होता है-यदि श्रेणि का प्रारम्भ स्त्री करती है तो वह पहले स्त्रीवेद के, पीछे पुरुषवेद के अनन्तर नपुंसकवेद के उदय का विच्छेद करके क्रमश: संज्वलन-त्रिक के उदय को रोकती है। श्रेणि का प्रारम्भ करनेवाला यदि पुरुष होता है तो वह सबसे पहले पुरुष-वेद के, पीछे स्त्रीवेद के अनन्तर नपुंसकवेद के उदय को रोक कर क्रमश: संज्वलन-त्रिक के उदय का विच्छेद करता है और श्रेणि को करने वाला यदि नपुंसक है तो सबसे पहले वह नपुंसक-वेद के उदय को रोकता
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