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कर्मग्रन्थभाग- २
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सातवें गुणस्थान में ७६ कर्म-प्रकृतियों का उदय होता है क्योंकि पूर्वोक्त (८१) - कर्म - प्रकृतियों में से स्त्यानर्द्धित्रिक और आहरकद्विक इन (५) कर्मप्रकृतियों का उदय छट्ठे गुणस्थान के अन्तिम समय तक ही हो सकता है; आगे के गुणस्थानों में नहीं ।। १७ ।।
भावार्थ- सूक्ष्मनामकर्म का उदय, सूक्ष्म जीवों को ही अपर्याप्त-नामकर्म का उदय, अपर्याप्त जीवों को ही और साधारण-नाम-कर्म का उदय अनन्तकायिक- जीवों को ही होता है । परन्तु सूक्ष्म, अपर्याप्त और अनन्त- कायिक जीवों को न तो सास्वादन - सम्यक्त्व प्राप्त होता है और न कोई सास्वादन - प्राप्त - जीव, सूक्ष्म, अपर्याप्त या अनन्तकायिक रूप से पैदा होता है। तथा आतप - नामकर्म का उदय बादर - पृथ्वी - कायिक जीव को ही होता है, सो भी शरीरपर्याप्ति के पूर्ण हो जाने के बाद ही; पहले नहीं । परन्तु सासादन- सम्यक्त्व को पाकर जो जीव बादर- पृथ्वीकाय में जन्म ग्रहण करते हैं वे शरीर-पर्याप्ति को पूरा करने के पहले ही - अर्थात् आतप - नामकर्म के उदय का अवसर आने के पहले ही - पूर्वप्राप्त सास्वादनसम्यक्त्व का वमन कर देते हैं अर्थात् बादरपृथ्वी-कायिक जीवों को, जब सास्वादन - सम्यक्त्व का सम्भव होता है तब आतप नामकर्म का उदय सम्भव नहीं है और जिस समय आतपनामकर्म का सम्भव होता है उस समय उनको सास्वादन - सम्यक्त्व सम्भव नहीं होता है। तथा मिथ्यात्व का उदय पहले गुणस्थान में ही होता है किन्तु सास्वादन - सम्यक्त्व पहले गुणस्थान के समय, कदापि नहीं होता। इससे मिथ्यात्व के उदय का और सम्यक्त्व का किसी भी जीव में एक समय में होना असंभव है। इसी प्रकार नरक-आनुपूर्वी का उदय, वक्रगति से नरक में जानेवाले जीवों को होता है। परन्तु उन जीवों को उस अवस्था में सास्वादन सम्यक्त्व नहीं होता। इससे नरकआनुपूर्वी का उदय और सास्वादन - सम्यक्त्व इन दोनों का किसी भी जीव में एक साथ होना असम्भव है। अतएव सासादन सम्यग्दृष्टि नामक दूसरे गुणस्थान में सूक्ष्म-नामकर्म से लेकर नरक - आनुपूर्वीपर्यन्त ६ - कर्म - प्रकृतियों के उदय का निषेध किया है, और पहले गुणस्थान की उदययोग्य कर्म- प्रकृतियों में से उक्त ६- प्रकृतियों को छोड़कर, शेष कर्म-प्रकृतियों का उदय दूसरे गुणस्थान के समय माना गया है। अनन्तानुबन्धी- कषाय का उदय पहले और दूसरे गुणस्थान में ही होता है, आगे के गुणस्थानों में नहीं। स्थावर - नामकर्म, एकेन्द्रियजातिनामकर्म, द्वीन्द्रिय जातिनामकर्म, त्रीन्द्रिय जातिनामकर्म, और चतुरिन्द्रियजाति- नामकर्म के उदयवाले जीवों में, तीसरे गुणस्थान से लेकर आगे का कोई भी गुणस्थान नहीं
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