Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
५८
कर्मग्रन्थभाग-१
सुरहिदुरही रसा पण तित्तकडुकसायअंबिला महुरा । फासा गुरुलहुमिउखरसीउण्ह सिणिद्धरुक्खऽट्ठा ।।४१।।
(सुरहि) सुरभि और (दुरही) दुरभि दो प्रकार का गन्ध है। (तित्त) तिक्त, (कडु) कटु, (कसाय) कषाय, (अंबिला) आम्ल और (महुरा) मधुर, ये (रसा पण) पाँच रस हैं। (गुरु लह मिउ खर सी उण्ह सिणिद्ध रुक्खऽट्ठा) गुरु, लघु, मृदु, खर, उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष ये आठ (फासा) स्पर्श हैं ।।४१।।
भावार्थ-गन्ध नामकर्म के दो भेद हैं- सुरभिगन्ध नाम और दुरभिगन्ध नाम।
१. जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर की कपूर, कस्तूरी आदि पदार्थों जैसी सुगन्धि होती है, उसे 'सुरभिगन्ध नामकर्म' कहते हैं। तीर्थङ्कर आदि के शरीर सुगन्धित होते हैं।
२. जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर की लहसुन या सड़े पदार्थों जैसी गन्ध हो, उसे 'दुरभिगन्ध नामकर्म' कहते हैं। 'रस नामकर्म के पाँच भेद'
तिक्त नाम, कटु नाम, कषाय नाम, आम्ल नाम और मधुर नाम। १: जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर-रस नीम्ब या चिरायते जैसा कड़वा
हो, वह 'तिक्तरस नामकर्म' है। २. जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर-रस सोंठ या काली मिर्च जैसा
चरपरा हो, वह 'कटुरस नामकर्म' है। ३. जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर-रस आँवला या बहेड़ा जैसा कसैला
हो, वह 'कषायरस नामकर्म' है। ४. जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर-रस नीबू या इमली जैसा खट्टा
हो वह 'आम्लरस नामकर्म' है। ५. जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर-रस, ईख जैसा मीठा हो, वह
‘मधुररस नामकर्म' है। 'स्पर्श नामकर्म के आठ भेद'।
गुरु नाम, लघु नाम, मृदु नाम, खर नाम, शीत नाम, उष्ण नाम, स्निग्ध नाम और रुक्ष नाम।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org