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कर्मग्रन्थभाग-१
(एयं) यह अन्तरायकर्म (सिरिहरियसमं) श्रीगृहीभण्डारी के समान है, (जह) जैसे (तेण) उसके भण्डारी के (पडिकूलेण) प्रतिकूल होने से (रायाई) राजा आदि (दाणाईयं) दान आदि (न कुणइ) नहीं करते नहीं कर सकते। (एवं) इस प्रकार (विग्घेण) विघ्नकर्म के कारण (जीवो वि) जीव भी दान आदि नहीं कर सकता ।।५३।।
भावार्थ-देवदत्त याचक ने राजा साहब के पास आकर भोजन की याचना की। राजा साहब, भण्डारी को भोजन देने की आज्ञा देकर चल दिये। भण्डारी असाधारण है। आँखे लाल कर उसने याचक से कहा—'चुपचाप चल दो।' याचक खाली हाथ लौट गया राजा की इच्छा थी, पर भण्डारी ने उसे सफल होने नहीं दिया। इस प्रकार जीव राजा है, दान आदि करने की उसकी इच्छा है पर; अन्तरायकर्म इच्छा को सफल नहीं होने देता। आठ मूल-प्रकृतियों की तथा एक सौ अट्ठावन उत्तर-प्रकृतियों की सूची
कर्म की आठ मूल-प्रकृतियाँ १. ज्ञानावरणीय, २. दर्शनावरणीय, ३. वेदनीय, ४. मोहनीय, ५. आयु, ६. नाम, ७. गोत्र और ८. अन्तराय।
ज्ञानावरण की पाँच उत्तर-प्रकृतियाँ १. मतिज्ञानावरण, २. श्रुतज्ञानावरण, ३. अवधिज्ञानावरण, ४. मनः पर्यायज्ञानावरण और ५. केवलज्ञानावरण।
दर्शनावरण की नव उत्तर-प्रकृतियाँ १. चक्षुर्दर्शनावरण, २. अचक्षुर्दर्शनावरण, ३. अवधिदर्शनावरण, ४. केवलदर्शनावरण, ५. निद्रा, ६. निद्रा-निद्रा, ७. प्रचला, ८. प्रचला-प्रचला और ९. स्त्यानद्धि।
वेदनीय की दो उत्तर-प्रकृतियाँ १. सातावेदनीय और २. असातावेदनीय।
मोहनीय की अट्ठाईस उत्तर-प्रकृतियाँ १. सम्यक्त्वमोहनीय, २. मिश्रमोहनीय, ३. मिथ्यात्वमोहनीय, ४. अनन्तानुबन्धिक्रोध, ५. अप्रत्याख्यानक्रोध, ६. प्रत्याख्यानक्रोध,
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