Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग- १
पुस्तक आदि को पैरों से हटाना, पुस्तकों से तकिये का काम लेना, पुस्तकों को भण्डार में पड़े-पड़े सड़ने देना किन्तु उनका सदुपयोग न होने देना, उदरपोषण को लक्ष्य में रखकर पुस्तकें बेचना, पुस्तकों के पत्रों से जूते साफ़ करना, पढ़कर विद्या को बेचना, इत्यादि कामों से ज्ञानावरणकर्म का बन्ध होता है ।
इसी प्रकार दर्शनी – साधु आदि तथा दर्शन के साधन इन्द्रियों का नष्ट करना इत्यादि से दर्शनावरणीय कर्म का बन्ध होता है।
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आत्मा के परिणाम ही बन्ध और मोक्ष के कारण हैं इसलिये ज्ञानी और ज्ञान-साधनों के प्रति जरा सी भी लापरवाही दिखलाना अपना ही घात करना है; क्योंकि ज्ञान आत्मा का गुण है, उसके अमर्यादित विकास को प्रकृति ने घेर रखा है। यदि प्रकृति के परदे को हटाकर उस अनन्त ज्ञान - शक्ति - रूपिणी देवी के दर्शन करने की लालसा हो, तो उस देवी का और उससे सम्बन्ध रखने वाले ज्ञानी तथा ज्ञान-साधनों का अन्तःकरण से आदर करना चाहिए, जरा सा भी अनादर हुआ तो प्रकृति का घेरा और भी मूजबूत बनेगा। परिणाम यह होगा कि जो कुछ ज्ञान का विकास है वह और भी समुचित हो जायेगा । ज्ञान के परिच्छन्न होने से – उसके मर्यादित होने से ही सारे दुःखों की माला उपस्थित होती है, क्योंकि एक मिनट के बाद क्या अनिष्ट होनेवाला है यह यदि मालूम हो, तो व्यक्ति उस अनिष्ट से बचने की बहुत कुछ कोशिश कर सकता है । सारांश यह है कि जिस गुण के प्राप्त करने से वास्तविक आनन्द मिलने वाला होता है उस गुण के अभिमुख होने के लिये जिन-जिन कामों को न करना चाहिये उनको यहाँ प्रस्तुत कर ग्रन्थकार ने ठीक ही किया है।
सातावेदनीय तथा असातावेदनीय के बन्ध के कारण गुरुभत्तिखंतिकरुणा-वयजोगकसायविजयदाणजुओ । दढधम्माई अज्जइ सायमसायं विवज्जयओ ।। ५५ ।। (गुरुभत्तिखंतिकरुणा-वयजोगकसायविजयदाणजुओ) गुरु भक्ति से युक्त, क्षमा से युक्त, करुणा- युक्त, व्रतों से युक्त, योगों से युक्त, कषाय-विजय - युक्त, दान-युक्त और (दढधम्माइ) दृढ धर्म आदि से युक्त जीव (सायं) सातावेदनीय का (अज्जइ) उपार्जन करता है, और (विवज्जयओ) विपर्यय से (असायं) असातावेदनीय का उपार्जन करता है || ५५ ॥
भावार्थ — सातावेदनीय कर्म के बन्ध होने में कारण ये हैं
१. गुरुओं की सेवा करना, अपने से जो श्रेष्ठ हैं वे गुरु, जैसे कि माता, पिता, धर्माचार्य, विद्या सिखलानेवाला, ज्येष्ठ भ्राता आदि ।
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