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कर्मग्रन्थभाग-२
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६. जो व्रतों को जानते हुये भी स्वीकार नहीं कर सकते किन्तु उनका पालन
अवश्य करते हैं, वे अनुत्तरविमानवासी देव। ७. जो व्रतों को जानकर स्वीकार लेते हैं, किन्तु पीछे से उनका पालन नहीं
कर सकते, वे संविग्नपाक्षिक।
सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्पालन से ही व्रत सफल होते हैं। जिन को व्रतों का सम्यग्ज्ञान नहीं है, जो व्रतों को विधिपूर्वक ग्रहण नहीं करते और जो व्रतों का यथार्थ पालन नहीं करते, वे सब घुणाक्षरन्याय से व्रतों को पाल भी लें तथापि उससे फल सम्भव नहीं है। उक्त सात प्रकार के अविरतों में से पहले चार प्रकार के अविरत-जीव तो मिथ्यादृष्टि ही हैं। क्योंकि उनको व्रतों का यथार्थ ज्ञान ही नहीं है। और पिछले तीन प्रकार के अविरत जीव सम्यग्दृष्टि हैं। क्योंकि वे व्रतों को यथाविधि ग्रहण तथा पालन नहीं कर सकते, तथापि उन्हें यथार्थ जानते हैं। अविरतसम्यग्दृष्टि जीवों में भी कोई औपशमिक सम्यक्त्वी होते हैं, कोई क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी होते हैं और कोई पाक्षिक-सम्यक्त्वी होते हैं। अविरत सम्यग्दृष्टि जीव व्रत-नियम को यथावत् जानते हुये भी स्वीकार तथा पालन नहीं कर सकते क्योंकि उनको अप्रत्याख्यानावरण-कषाय का उदय रहता है, और यह उदय चारित्र के ग्रहण तथा पालन का प्रतिबंधक (रोकने वाला) है।।४।।
५. देशविरतगुणस्थान–प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय के कारण जो जीव, पापजनक क्रियाओं से बिल्कुल नहीं किन्तु देश (अंश) से अलग हो सकते हैं वे देशविरत या श्रावक कहलाते हैं; और उनका स्वरूप-विशेष देशविरत गुणस्थान। कोई श्रावक एक व्रत को ग्रहण करता है, और कोई दो व्रत को। इस प्रकार अधिक से अधिक व्रत को पालन करने वाले श्रावक ऐसे भी होते हैं जो कि पापकार्यों में अनुमति के अतिरिक्त और किसी प्रकार से भाग नहीं लेते। अनुमति तीन प्रकार की है, जैसे-१. प्रतिसेवनानुमति, २. प्रतिश्रवणानुमति और ३. संवासानुमति। अपने या दूसरे के किये हुये भोजनआदि का उपभोग करना 'प्रतिसेवनानुमति' कहलाती है। पुत्र-आदि किसी सम्बन्धी के द्वारा किये गये पाप कर्मों को केवल सुनना, और सुनकर भी उन कामों के करने से पुत्र आदि को नहीं रोकना; उसे 'प्रतिश्रवणानुमति' कहते हैं। पुत्र आदि अपने सम्बन्धियों के पाप-कार्य में प्रवृत्त होने पर, उनके ऊपर सिर्फ ममता रखनाअर्थात् न तो पाप-कर्मों को सुनना और सुनकर भी न उसकी प्रशंसा करना, इसे 'संवासानुमति' कहते हैं। जो श्रावक, पापजनक-आरम्भों में किसी भी प्रकार
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