________________
कर्मग्रन्थभाग-१
६९
(सुसरा) सुस्वरनाम के उदय से (महुरसुहझुणी) मधुर और सुखद ध्वनि होती है। (आइज्जा) आदेयनाम के उदय से (सव्वलोयगिज्झवओ) सब लोग वचन का आदर करते हैं। (जसओ) यश:कीर्ति, नाम के उदय से (जसकित्ती) यश:कीर्ति होती है, (थावर-दसगं) स्थावर-दशक, (इओ) यह त्रस दशक से (विवज्जत्थं) विपरीत अर्थ वाला है ।।५१।।
भावार्थ-जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर (आवाज) मधुर और प्रीतिकर हो, वह 'सु स्वर नामकर्म' है। इसमें दृष्टान्त, कोयल-मोर-आदि जीवों का स्वर है।
जिस कर्म के उदय से जीव का वचन सर्वमान्य हो, वह 'आदेय नामकर्म' है।
जिस कर्म के उदय से संसार में यश और कीर्ति फैले, वह 'यश:कीर्ति नामकर्म' है।
किसी एक दिशा में नाम (प्रशंसा) हो, तो 'कीर्ति' और सब दिशाओं में नाम हो, तो 'यश' कहलाता है।
अथवा-दान, तप आदि से जो नाम होता है, वह कीर्ति और शत्रु पर विजय प्राप्त करने से जो नाम होता है, वह यश कहलाता है।
त्रस-दशक का त्रस नाम आदि दस कर्मों का-जो स्वरूप कहा गया है, उससे विपरीत, स्थावर-दशक का स्वरूप है। इसी को नीचे लिखा जाता है
१. स्थावर नाम-जिस कर्म के उदय से जीव स्थिर रहे-सर्दी-गर्मी से बचने की कोशिश न कर सके, वह स्थावर नामकर्म है।
पृथ्वीकाय, जलकाय, तेज:काय, वायुकाय, और वनस्पतिकाय, ये स्थावर जीव हैं।
यद्यपि तेज:काय और वायुकाय के जीवों में स्वाभाविक गति है तथापि द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीवों की तरह सर्दी-गरमी से बचने की विशिष्ट-गति उनमें नहीं है।
२. सूक्ष्मनाम-जिस कर्म के उदय से जीव को सूक्ष्म शरीर-जो किसी को रोक न सके और न खुद ही किसी से रुके, वह सूक्ष्म नामकर्म है।
इस नामकर्म वाले जीव भी पाँच स्थावर ही होते हैं। वे सब लोकाकाश में व्याप्त हैं। आँख से नहीं देखे जा सकते।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org