Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
कर्मग्रन्थभाग- १
तेइसवींगाथा में कहा गया था कि नामकर्म की संख्याएँ भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से भिन्न-भिन्न हैं अर्थात् उसके बयालीस ४२ भेद भी हैं और तिरानवे ९३ भेद भी हैं इत्यादि । बयालीस भेद अब तक कहे गये उन्हें यों समझना चाहिएचौदह १४ पिण्डप्रकृतियाँ चौबीसवीं गाथा में कही गई; आठ ८ प्रत्येक प्रकृतियाँ, पच्चीसवीं गाथा में कही गई; त्रस - दशक और स्थावरदशक की बीस प्रकृतियाँ क्रमश: छब्बीसवीं और सत्ताईसवीं गाथा में कही गई हैं। इन सबको मिलाने से नाम-कर्म की बयालीस प्रकृतियाँ हुई।
'नामकर्म के बयालीस भेद कह चुके हैं, अब उसी के तिरानवे भेदों को कहने के लिए चौदह पिण्ड - प्रकृतियों की उत्तर- - प्रकृतियाँ कही जाती हैं । ' गइयाईण उ कमसो चउपणपणतिपणपंचछच्छक्कं । उत्तरभेयपणसट्ठी ।। ३०॥
पणदुगपणट्ठचउदुग इय
(गइयाईण) गति आदि के (उ) तो (कमसो) क्रमश: (चउ) चार, (पण) पाँच, (पण) पाँच, (छ) छह, (छक्कं) छह, (पण) पाँच, (दुग) दो, (पणट्ठः) पाँच, आठ, (चउ) चार, और (दुग) दो, (इय) इस प्रकार ( उत्तर भेयपणसट्ठी) पैंसठ उत्तर - भेद हैं ||३०||
४५
नाम
भावार्थ - चौबीसवीं गाथा में चौदह पिण्डप्रकृतियों के नाम कहे गये हैं, इस गाथा में उनके हर एक के उत्तर-भेदों की संख्या को कहते हैं; जैसे कि१. गतिनाम-कर्म के चार भेद, २. जातिनाम-कर्म के पाँच भेद, ३. तनु (शरीर) - कर्म के पाँच भेद, ४. उपाङ्गनाम-कर्म के तीन भेद, ५. बन्धननाम-कर्म के पाँच भेद, ६. संघातननाम-कर्म के पाँच भेद, ७. संहनननाम-कर्म के छह भेद, ८. संस्थाननाम - कर्म के छह भेद, ९. वर्णनाम-कर्म के पाँच भेद, १०. गन्धनाम-कर्म के दो भेद, ११. रसनाम-कर्म के पाँच भेद, १२. स्पर्शनामकर्म के आठ भेद, १३. आनुपूर्वीनाम-कर्म के चार भेद, १४. विहायोगतिनामकर्म के दो भेद, इस प्रकार उत्तर - भेदों की कुल संख्या पैंसठ ६५ होती हैं। ‘नाम-कर्म की ९३, १०३ और ६७ प्रकृतियाँ किस तरह होती हैं, सो दिखलाते हैं।'
अडवीस जुया तिनवइ सन्ते वा पनरबंधणे तिसयं । बंधणसंघाय हो तणूसु सामन्नवण्णचऊ ।। ३१ ।। (अड़वीसजुया) अट्ठाईस प्रत्येक प्रकृतियों को पैंसठ प्रकृतियों में जोड़ देने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org