Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
कर्मग्रन्थभाग- १
तैजस और कार्मण शरीर की नवीन उत्पत्ति नहीं होती, इसलिये उनमें देश - बन्ध समझना चाहिये ।
५२
१. जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत – प्रथम ग्रहण किये हुये औदारिक पुद्गलों के साथ, गृह्यमाण - वर्तमान समय में जिनका ग्रहण किया जा रहा हो ऐसे — औदारिक पुद्गलों का आपस में मेल हो जाये, उसे औदारिक शरीरबन्धन नामकर्म कहते हैं।
२. जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत वैक्रियपुद्गलों के साथ गृह्यमाणवैक्रिय पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह वैक्रिय शरीर बन्धन नामकर्म है।
३. जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत आहारक पुद्गलों के साथ गृह्यमाण आहारक पुद्गलों का आपस में सम्बन्ध हो वह आहारक शरीर - बन्धन नामकर्म है।
-
४. जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत तैजस पुद्गलों के साथ गृह्यमाण तैजस पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध हो, वह तैजस शरीर बन्धन नामकर्म है। ५. जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत कार्मण पुद्गलों के साथ, गृह्यमाण कार्मण पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध हो, वह कार्मण शरीर बन्धन नामकर्म है। 'बन्धन नामकर्म का स्वरूप कह चुके हैं। बिना एकत्रित किये हुये पुद्गलों का आपस में बन्ध नहीं होता इसलिये परस्पर सन्निधान का कारण, सङ्घातन नाम-कर्म कहा जाता है।'
उरलाइपुग्गले बंधणमिव तणुनामेण
(दंताली) दंताली (तणगणं व ) तृण-समूह के सदृश (जं) जो कर्म (उरलाइपुग्गले) औदारिक आदि शरीर के पुद्गलों को (संघायइ) इकट्ठा करता है (तं संघायं) वह संघातन नामकर्म है । ( बंधणमिव ) बन्धन नामकर्म की तरह (तणुनामेण) शरीरनाम की अपेक्षा से वह (पंचविहं ) पाँच प्रकार का है || ३६ ||
जं संघाय तं संघायं
तणगणं व दंताली ।
पंचविहं ।। ३६ ।।
भावार्थ – प्रथम ग्रहण किये हुये शरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण शरीर पुद्गलों का परस्पर बन्ध तभी हो सकता है जब कि उन दोनों प्रकार केगृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो। (पुद्गलों को परस्पर सन्निहित करना - एक-दूसरे के पास व्यवस्था से स्थापन करना संघातन कर्म का कार्य है।) इसमें दृष्टान्त दन्ताली है, जैसे दन्ताली से इधर-उधर बिखरी हुई घास इकट्ठी की जाती है फिर उस घास का गट्ठा बाँधा जाता है उसी प्रकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org