Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थ भाग - १
वह धर्म झूठा है, अविश्वसनीय है, इस प्रकार अरुचि रूप द्वेष भी नहीं होता । मिश्रमोहनीय का उदयकाल अन्तर्मुहूर्त का है।
जिस प्रकार रोगी को पथ्य चीजें अच्छी नहीं लगतीं और कुपथ्य चीजें अच्छी लगती हैं; उसी प्रकार मिथ्यात्वमोहनीय कर्म का जब उदय होता है तब जीव को जैनधर्म पर द्वेष तथा उससे विरुद्ध धर्म में राग होता है।
मिथ्यात्व के दस भेदों को संक्षेप से लिखते हैं।
१. जिनको कांचन और कामिनी नहीं लुभा सकती, जिनको सांसारिक लोगों की तारीफ खुश नहीं करती, ऐसे साधुओं को साधु न समझना।
२. जो कांचन और कामिनी के दास बने हुए हैं, जिनको सांसारिक लोगों से प्रशंसा पाने की दिन-रात इच्छा बनी रहती है ऐसे साधु वेशधारियों को साधु समझना और मानना ।
३. क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य - ये धर्म के दस भेद हैं, इनको अधर्म समझना ।
४. जिन कृत्यों से या विचारों से आत्मा की अधोगति होती है, वह अधर्म है, जैसे कि - हिंसा करना, शराब पीना, जुआ खेलना, दूसरों की बुराई सोचना इत्यादि, इनको धर्म समझना ।
५. शरीर, इन्द्रिय, मन ये जड़ हैं, इनको आत्मा समझना अर्थात् अजीव को जीव मानना ।
६. जीव को अजीव मानना, जैसे कि, गाय, बैल, बकरी, मुर्गी आदि प्राणियों में आत्मा नहीं है अतएव इनके खाने में कोई दोष नहीं ऐसा समझना। ७. उन्मार्ग को सुमार्ग समझना, अर्थात् जो पुरानी या नई कुरीतियाँ हैं, जिनसे सचमुच हानि ही होती है, वह उन्मार्ग, उसको सुमार्ग समझना ।
८. सुमार्ग को उन्मार्ग समझना, अर्थात् जिन पुराने या नये रिवाजों से धर्म की वृद्धि होती है, उस सुमार्ग को कुमार्ग समझना।
९. कर्म रहित को कर्म सहित मानना । राग और द्वेष, कर्म के सम्बन्ध से होते हैं। परमेश्वर में राग-द्वेष नहीं है तथापि यह समझना कि भगवान् अपने भक्तों की रक्षा के लिये दैत्यों का नाश करते हैं। अमुक स्त्रियों की तपस्या से प्रसन्न हो, उनके पति बनते हैं इत्यादि ।
१०. कर्म सहित को कर्म रहित मानना । भक्तों की रक्षा और शत्रुओं का नाश
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