Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग-१
आये हैं कि जिनके सामने बादशाहों ने, हिन्दू नरपतियों ने और बड़े-बड़े विद्वानों ने सिर झुकाया है।
५. परिवार-श्रीदेवेन्द्रसूरि का परिवार कितना बड़ा था इसका स्पष्ट खुलासा तो कहीं देखने में नहीं आया, पर इतना लिखा मिलता है कि अनेक संविग्न मुनि उनके आश्रित थे।१ गुर्वावली में उनके दो शिष्य-श्रीविद्यानन्द और श्रीधर्मकीर्त्ति-का उल्लेख है। ये दोनों भाई थे। 'विद्यानन्द' नाम, सूरिपद के पीछे का है। इन्होंने 'विद्यानन्द' नाम का व्याकरण बनाया है। धर्मकीर्ति उपाध्याय, जो सूरिपद लेने के बाद 'धर्मघोष' नाम से प्रसिद्ध हुए, उन्होंने भी कुछ ग्रन्थ रचे हैं। ये दोनों शिष्य, अन्य शास्त्रों के अतिरिक्त जैनशास्त्र के अच्छे विद्वान् थे। इसका प्रमाण, उनके गुरु श्रीदेवेन्द्रसूरि की कर्मग्रन्थ की वृत्ति के अन्तिम पद्य से मिलता है। उन्होंने लिखा है कि 'मेरी बनाई हुई इस टीका को श्री विद्यानन्द
और श्री धर्मकीर्ति, दोनों विद्वानों ने शोध किया है।' इन दोनों का विस्तृत वृत्तान्त जैनतत्त्वादर्श के बारहवें परिच्छेद में दिया था।
६. ग्रन्थ-श्रीदेवेन्द्रसूरि के कुछ ग्रन्थ जिनके विषय में जानकारी मिलती है उनके नाम नीचे लिखे जाते हैं
१. श्राद्धदिनकृत्य सूत्रवृत्ति, २. सटीक पाँच नवीन कर्मग्रन्थ, ३. सिद्धपंचाशिका सूत्रवृत्ति, ४. धर्मरत्नवृत्ति, ५. सुदर्शन चरित्र, ६. चैत्यवंदनादि भाष्यत्रय, ७. वंदारुवृत्ति, ८. सिरिउसहवद्धमाण प्रमुख स्तवन, ९. सिद्धदण्डिका, १०. सारवृत्तिदशा।
इनमें से प्राय: बहुत ग्रन्थ जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, आत्मानन्द सभा भावनगर, देवचन्द लालभाई पुस्तकोत्तर फण्ड, सूरत की ओर से छप चुके हैं।
१. देखो, पद्य १५३ में आगे।
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