Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
कर्मग्रन्थभाग-१
१२. अनुयोगसमासश्रुत, १३. प्राभृतप्राभृतश्रुत, १४. प्राभृतप्राभृतसमासश्रुत, १५. प्राभृतश्रुत, १६. प्राभृतसमासश्रुत, १७. वस्तुश्रुत, १८. वस्तुसमासश्रुत, १९. पूर्वश्रुत, २०. पूर्वसमासश्रुत। १. पर्यायश्रुत-उत्पत्ति के प्रथम समय में, लब्धि अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद
के जीव को जो कुश्रुत का अंश होता है, उससे दूसरे समय में ज्ञान
का जितना अंश बढ़ता है, उसे पर्याय श्रुत कहते हैं। २. पर्यायसमासश्रुत-उक्त पर्यायश्रुत के समुदाय को अर्थात् दो, तीन,
आदि संख्याओं को पर्यायसमासश्रुत कहते हैं। ३. अक्षरश्रुत-अकार आदि लब्ध्यक्षरों में से किसी एक अक्षर को अक्षर
श्रुत कहते हैं। ४. अक्षरसमासश्रुत-लब्ध्यक्षरों के समुदाय को अर्थात् दो, तीन आदि
संख्याओं को अक्षरसमासश्रुत कहते हैं। ५. पदश्रुत—जिस अक्षर समुदाय से पूरा अर्थ मालूम हो, वह पद और उसके
ज्ञान को पदश्रुत कहते हैं। ६. पदसमासश्रुत-पदों के समुदाय का ज्ञान पदसमासश्रुत है।
संघातश्रुत-गति आदि चौदह मार्गणाओं में से, किसी एक मार्गणा के एक देश के ज्ञान को संघातश्रुत कहते हैं। जैसे गति मार्गणा के चार अवयव हैं; १. देवगति, २. मनुष्यगति, ३. तिर्यश्चगति और ४. नारकगति। इनमें से एक का ज्ञान संघातश्रुत कहलाता है। संघातसमासश्रुत.—किसी एक मार्गणा के अनेक अवयवों का ज्ञान, संघातसमास श्रुत है। प्रतिपत्तिश्रुत-गति, इन्द्रिय आदि द्वारों में से किसी एक द्वार के जरिये समस्त संसार के जीवों को जानना, प्रतिपत्तिश्रुत है। प्रतिपत्तिसमासश्रुत-गति आदि दो चार द्वारों के जरिये जीवों का ज्ञान, प्रतिपत्तिसमासश्रुत है। अनुयोगश्रुत-'संतपयपरूवणया दव्वपमाणं च' इस गाथा में कहे हुये अनुयोगद्वारों में से किसी एक के द्वारा जीवादि पदार्थों को जानना, अनुयोगश्रुत है।
१०. प्रा
११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org