Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग-१
श्रतज्ञान का अन्त होगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता–अर्थात् प्रवाह रूप से सब जीवों की अपेक्षा से श्रुतज्ञान, अनादि-अनन्त है।
क्षेत्र की अपेक्षा से श्रुतज्ञान, सादि सान्त तथा अनादि अनन्त है। जब भरत तथा ऐरावत क्षेत्र में तीर्थ की स्थापना होती है, तब से द्वादशाङ्गी-रूप श्रुत का आदि और जब तीर्थ का विच्छेद होता है, तब श्रुत का भी अन्त हो जाता है, इस प्रकार श्रुतज्ञान सादि-सान्त हुआ। महाविदेह क्षेत्र में तीर्थ का विच्छेद कभी नहीं होता इसलिए वहाँ श्रुतज्ञान, अनादि-अनन्त है।
काल की अपेक्षा से श्रुतज्ञान सादि-सान्त और अनादि-अनन्त है। उत्सर्पिणी--अवसर्पिणी काल की अपेक्षा से श्रृतज्ञान सादि-सान्त है; क्योंकि तीसरे आरे के अन्त में और चौथे तथा पाँचवें आरे में रहता है और छठे आरे में नष्ट हो जाता है। दो उत्सर्पिणी-नो अवसर्पिणी काल की अपेक्षा से श्रुतज्ञान •अनादि-अनन्त है। महाविदेह क्षेत्र में नो उत्सर्पिणी-नो अवसर्पिणी काल है अर्थात् उक्त क्षेत्र उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीरूप काल का विभाग नहीं है। भाव की अपेक्षा से श्रृतज्ञान सादि-सान्त तथा अनादि-अनन्त है। भव्य की अपेक्षा से श्रुतज्ञान सादि-सान्त तथा अभव्य की अपेक्षा से कुश्रुत, अनादि-अनन्त है। भव्यत्व और अभव्यत्व दोनों, जीव के पारिणामिक भाव हैं। यहाँ श्रुत शब्द से सम्यक्श्रुत तथा कुश्रुत दोनों लिये गये हैं। सपर्यवसित और सान्त दोनों का अर्थ एक ही है। इसी तरह अपर्यवसित और अनन्त दोनों का अर्थ एक है।
___'श्रुतज्ञान के बीस भेद' पज्जय अक्खर पय संघाया पडिवत्ति तह य अणुओगो । पाहुडपाहुड पाहुड वत्थू पुव्वा य ससमासा ।।७।।
(पज्जय) पर्यायश्रुत, (अक्खर) अक्षर श्रुत, (पय) पदश्रुत, (संघाय) संघात श्रुत, (पडिवत्ति) प्रतिपत्ति श्रुत (तहय) उसी प्रकार (अणुओगो) अनुयोगश्रुत, (पाहुड पाहुड) प्राभृत प्राभृतश्रुत, (पाहुड) प्राभृत श्रुत (वत्थू) वस्तु श्रुत (य)
और (पुव्व) पूर्व श्रुत, ये दसों (ससमासा) समास सहित हैं। अर्थात् दसों के साथ 'समास' शब्द को जोड़ने से दूसरे दस भेद भी होते हैं।॥७॥
भावार्थ-इस गाथा में श्रुत ज्ञान के बीस भेद कहे गये हैं। उनके नाम १. पर्यायश्रुत, २. पर्यायसमासश्रुत, . ३. अक्षरश्रुत, ४. अक्षरसमासश्रुत, ५. पदश्रुत, ६. पदसमासश्रुत, ७. संघातश्रुत, ८. संघातसमासश्रुत, ९. प्रतिपत्तिश्रुत, १०. प्रतिपत्तिसमासश्रुत, ११. अनुयोगश्रुत,
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