Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग-१
१. औत्पातिकी बुद्धि-किसी प्रसंग पर, कार्य सिद्ध करने में एकाएक प्रकट होती है।
२. वैनयिकी-गुरुओं की सेवा से प्राप्त होने वाली बुद्धि। ३. कार्मिकी-अभ्यास करते-करते प्राप्त होने वाली बुद्धि।
४. पारिणामिकी-दीर्घायु को बहुत काल तक संसार के अनुभव से प्राप्त होने वाली बुद्धि।
श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के अट्ठाईस भेदों का यन्त्र स्पर्शन- घ्राण- रसन- . श्रवण- | चक्षु- | मननो- | २८ इन्द्रिय | | इन्द्रिय | इन्द्रिय |
इन्द्रिय | इन्द्रिय | इन्द्रिय
व्यञ्जन अवग्रह
व्यञ्जन | व्यञ्जन अवग्रह | अवग्रह
व्यञ्जन अवग्रह
| अर्थ
अर्थ
अर्थअवग्रह
अर्थ
अर्थअवग्रह
अर्थअवग्रह
अवग्रह
अवग्रह
अवग्रह
३ ईहा | ईहा । ईहा
। ईहा ।
ईहा । ईहा
अपाय
अपाय
अपाय
अपाय
अपाय |
अपाय
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४४
| धारणा | धारणा | धारणा | धारणा | धारणा | धारणा
'श्रुत ज्ञान के चौदह भेद'। अक्खर सन्त्री सम्मं साइअं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविटुं सत्तवि एए सपडिवक्खा ।।६।।
(अक्खर) अक्षरश्रुत, (सनी) संज्ञिश्रुत, (सम्म) सम्यक्श्रुतं, (साइअं) सादिश्रुत (च) और (सपज्जवसियं) सपर्यवसितश्रूत (गमियं) गभिकश्रुत और (अंगपविट्ठ) अंगप्रविष्टश्रुत (एए) ये (सत्तवि) सातों श्रुत, (सपडिवक्खा ) सप्रतिपक्ष हैं ॥६॥
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