Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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कर्मग्रन्थभाग- १
आधार
-यों तो यह ग्रन्थ कर्मप्रकृति, पञ्चसंग्रह आदि प्राचीनतर ग्रन्थों के आधार पर रचा गया है, परन्तु इसका साक्षात् आधार प्राचीन कर्मविपाक है जो श्री गर्गऋषि का बनाया हुआ है। प्राचीन कर्मग्रन्थ १६६ गाथाप्रमाण होने से पहले पहल कर्मशास्त्र में प्रवेश करने वालों के लिये बहुत विस्तृत हो जाता है, इसलिये उसका संक्षेप केवल ६१ गाथाओं में कर दिया गया है । इतना संक्षेप होने पर भी इसमें प्राचीन कर्मविपाक की खास व तात्त्विक बात कोई भी नहीं छूटी है। इतना ही नहीं, बल्कि संक्षेप करने में ग्रन्थकार ने यहाँ तक ध्यान रक्खा है कि कुछ अतिउपयोगी नवीन विषय, जिनका वर्णन प्राचीन कर्मविपाक में नहीं है उन्हें भी इस ग्रन्थ में दाखिल कर दिया है। उदाहरणार्थ - श्रुतज्ञान के पर्याय आदि २० भेद तथा आठ कर्मप्रकृतियों के बन्ध के हेतु, प्राचीन कर्मविपाक में नहीं हैं, पर उनका वर्णन इसमें है । संक्षेप करने में ग्रन्थकार ने इस तत्त्व की ओर भी ध्यान रक्खा है कि जिस एक बात का वर्णन करने से अन्य बातें भी समानता के कारण सुगमता से समझी जा सकें वहाँ उस बात को ही बतलाना, अन्य को नहीं। इसी अभिप्राय से, प्राचीन कर्मविपाक में जैसे प्रत्येक मूल या - प्रकृति का विपाक दिखाया गया है वैसे इस ग्रन्थ में नहीं दिखाया है । परन्तु आवश्यक वक्तव्य में कुछ भी कमी नहीं की गई है। इसी से इस ग्रन्थ का प्रचार सर्वसाधारण हो गया है। इसके पढ़ने वाले बिना टीका-टिप्पण के अनायास ही समझ सकते हैं। यह ग्रन्थ संक्षेपरूप होने से सबको मुख-पाठ करने में व याद रखने में बड़ी आसानी होती है। इसी से प्राचीन कर्मविपाक के छप जाने पर भी इसकी चाह और माँग में कुछ भी कमी नहीं हुई है। इस कर्मविपाक की अपेक्षा प्राचीन कर्मविपाक बड़ा है सही, पर वह भी उससे पुरातन - ग्रन्थ का संक्षेप ही है, यह बात उसके आदि में वर्तमान 'वोच्छं कम्मविवागं गुरुवइठं समासेण' इस वाक्य से स्पष्ट है।
उत्तर
XXX
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भाषा - यह कर्मग्रन्थ तथा इसके आगे के अन्य सभी कर्मग्रन्थ मूल प्राकृत भाषा में हैं। इनकी टीका संस्कृत में है। मूल गाथाएँ ऐसी सुगम भाषा में रची हुई हैं कि पढ़ने वालों को थोड़ा बहुत संस्कृत का बोध हो और उन्हें कुछ प्राकृत के नियम समझा दिये जायँ तो वे मूल गाथाओं के ऊपर से ही विषय का परिज्ञान कर सकते हैं। संस्कृत टीका भी बड़ी विशद भाषा में खुलासे के साथ लिखी गई है जिससे जिज्ञासुओं को पढ़ने में बहुत सुगमता होती है ।
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