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कुमारसंभव
उनकी आँखें लाल हो गईं और उन्होंने भौंहें तनाकर उस ब्रह्मचारी की ओर आँखें तरेरकर देखा ।
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शंखान्तरद्योति विलोचनं यदन्तर्निविष्टामलपिंगतारम् । 7/33
उनके माथे में पीली पुतली वाला जो चमकता हुआ नेत्र था ।
ऊरु मूल नखमार्गराजिभिस्तत्क्षणं हृत विलोचनो हरः । 18 / 87
नंगी जाँघों पर जो नखों के चिह्नों की पाँत दिखाई दे रही थी । उसे शिवजी एकटक होकर देख रहे थे ।
अग्नि
1. अग्नि :- [ अङ्गयन्ति अग्ग्रं जन्म प्रापयन्ति इति त्युत्पत्त्या हविः प्रक्षेपाधिकरणे गार्हपत्या वनीय दक्षिणाग्नि सभ्यावसथ्यौपासनाख्येषु षडग्निषु ] आग, आग का देवता, अग्नि ।
तत्राग्नि समित्स समिद्धं स्वमेव मूर्त्यन्तरमष्टमूर्तिः । 1 / 57
उसी चोटी पर शिवजी अपनी ही दूसरी मूर्ति अग्नि को समिधा से जगाकर । यद्द्ब्रह्म सम्यगाम्नातं यदग्नौ विधिना हुतम् । 7/17
भली प्रकार वेद पढ़ने का, विधिपूर्वक हवन करने का।
आश्रमाः प्रविशदग्रधेनवो विभ्रति श्रियमुदीरिताग्नयः । 8 / 8
लौटकर आती हुई सुन्दर दुधारू गौओं से और हवन की जलती हुई अग्नि से, ये आश्रम कैसे सुहावने लग रहे हैं ।
भानुमग्नि परिकीर्ण तेजसं संस्तुवन्ति किरणोष्म पायिनः ।। 8 / 41 उस सूर्य की स्तुति कर रहे हैं, जिन्होंने इस समय अपना तेज अग्नि को सौंप दिया है।
2. अनल :- पुं० [ नास्ति अल: बहुदाह्य वस्तु दहनेऽपि तृप्तिर्यस्य सः । कृत्तिका नक्षत्र, वत्सरे, भगवति वासुदेवे] अग्नि, आग ।
वरेण शमितं लोकनलं दग्धुं हि तत्तपः ।। 2/56
उसकी तपस्या से सारा संसार जल उठता ।
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ददृशे पुरुषाकृति क्षितौ हरकोपानल भस्म केवलम् । 4 /3
महादेव जी के क्रोध से जली हुई पुरुष के आकार की एक राख की ढेर, सामने पृथ्वी पर पड़ी हुई है।